24.5 C
Dehradun
Tuesday, June 24, 2025

देवभूमि उत्तराखंड को सशक्त भू कानून की दरकार |Postmenindia

रतन सिंह असवाल

आपदाओं और पहाड़ का चोली दामन का साथ है. इस सच्चाई से इनकार नही किया जा सकता है. उत्तराखंड को अन्य पर्वतीय राज्यों की तरह एक सशक्त भू कानून की आवश्यकता इसलिए भी है. हिमालय को दुनिया की युवा पर्वत सृंखला माना जाता है. जब हम हिमालय में भर्मण करते हैं तो इसके प्रमाण भी मिलते है. यदि उत्तराखंड की बसागतो की बात करें तो नदी घाटियों को छोड़ अधिकतर लैंड स्लाइडों के ऊपर बसी हुई जैसी दिखती है बात यदि हिमालयी राज्यों की करे तो आपदाओं और यहा के मनुष्य का चोली दामन का साथ है. एक प्रचलित कहावत भी है “गिरना, गिरकर उठना और फिर चल देना” पहाड़ी मानुष के मूल स्वभाव में होता है. अब आप सोच रहे होंगे कि मैं यह सब क्यो कह रहा हूं . मित्रों इसके मूल में है. “हमारी अपरिपक्व सोच” आपदाओं से रोज दो चार हो रहे राज्य के नीतिनियंताओ की सोच पर हर रोज प्रश्न खड़े होते है लेकिन उसका उत्तर कभी नही मिलता . एकलौता राज्य होगा जिसके पर्यावरण और भूगर्भ विज्ञान पर ज्ञान अर्थशास्त्र और सिविल इंजीनियरिंग वाले अधिक देते देखे जा सकते है. हिमालय पर वातननुकूली कक्षो में वे ज्ञान पेलते है जो ऋषिकेश से ऊपर धार्मिक कर्मकांड के निम्मित मात्र चढ़े है. मित्रो यदि आपदाओं के न्यूनीकरण और आपदा प्रभावित क्षेत्रों का चिन्हीकरण किया जाता है तो उसके लिए भू बैज्ञानिकों की एक कुशल टीम होनी चाहिए. विडंबना देखिये हर वर्ष दो सौ भू वैज्ञानिकों देने वाले राज्य में आपदाओं को इंजीनियर MBA’ अन्य विधाओं के खपाये गए नाते रिश्तेदार पगारी और गैर हिमालयी राज्यो के कन्सलटेंट नियुक्त किए जाते है..

जमीनी हकीकत..राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में आपदा प्रभावित गांवों में यदि भूवैज्ञानिक कोई ट्रीटमेंट और सुझाव देता है तो सरकारों एवं पैरोकारों को यह कहते सुना जा सकता है कि उनके पास इसके लिए बजट ही नही है. विस्थापन के लिए सुरक्षित भूमि नही है. जंहा भूमि कुछ बची भी है वह ढालदार होने के कारण बिना दीवारों के उसको समतल नही किया जा सकता है. अब जब सरकारों के पास विस्थापन के लिए बजट नही है तो वह भूमि समतल कैसे हो? इन्ही कारणों से विस्थापन नही हो पा रहे है और लोग हारकर पुराने भूस्खलन जोन में रहने को मजबूर है, जिससे उनके जानमाल का खरता हमेशा बना रहता है. अब जब जनप्रतिनिधियों के एजेंडे में चुनाव के अलावा कुछ नही और अधिकारियों की सोच ट्रांसफर पोस्टिंग और वेतन भत्तों से आगे की नही तो सशक्त भूमि कानून पर वे भला कब और  क्यों सोचेगे. अपवाद स्वरूप यदि राज्य की व्यूरोक्रेसी और राजनैतिक नेतृत्व में कुछ भगीरथ न हों तो यह कहना अतिशयोक्ति नही कि राज्य का राम जाने. वारहाल आखरी में यही कह सकते हैं कि जिस राज्य के सांसद और मंत्रियों को यह ज्ञान नही हो कि उनके राज्य के किस पद के लिए कौन सी शैक्षणिक योग्यता निर्धारित है तो भला अन्य राज्यों के भू कानूनों के बारे में उनका सामान्यज्ञान कितना बिराट होगा इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है. हाथ पर हाथ धरे बैठना हिमालय के साथ न्याय नही . आओ कंधे से कंधा मिलाएं और अपने पूर्वजों की धरोहर को अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए बचाएं .

यह भी पढ़ें – उत्तराखंड में चारधाम यात्रा स्थगित, सरकार ने जारी किए आदेश

spot_img

Related Articles

spot_img
spot_img
spot_img

Latest Articles

बीजिंग में डोभाल-वांग यी की मुलाकात, आतंकवाद के खिलाफ कड़ा संदेश; भारत-चीन संबंधों पर...

0
बीजिंग: बीजिंग में एससीओ बैठक के दौरान भारत के एनएसए अजीत डोभाल ने चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की। इस दौरान...

CM फडणवीस के बारे में आपत्तिजनक पोस्ट का मामला, कोर्ट ने आरोपी को अग्रिम...

0
मुंबई: मुंबई की एक अदालत ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के बारे में आपत्तिजनक पोस्ट करने के आरोपी को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर...

गृह मंत्री अमित शाह के साथ चार प्रदेशों के सीएम ने की मीटिंग, विभिन्न...

0
वाराणसी। भारत सरकार में केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह लाल बहादुर शास्त्री एयरपोर्ट पर सोमवार की शाम को पहुंचे। एयरपोर्ट पहुंचने पर...

ईरान ने कतर के बाद इराक और सीरिया में भी दागी मिसाइलें, अमेरिकी सैन्य...

0
दोहा: ईरान ने सोमवार की देर रात कतर में अमेरिकी सैन्य अड्डे अल उदीद पर मिसाइल हमला किया है। अमेरिका की ओर से ईरान...

मुख्यमंत्री ने दिए सारकोट की तर्ज पर प्रत्येक जिले में दो-दो आदर्श गांव बनाने...

0
देहरादून। मुख्यमंत्री आदर्श ग्राम सारकोट की तर्ज पर राज्य के प्रत्येक जिले में दो-दो आदर्श गांव बनाए जाएंगे। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सोमवार...