होलिका दहन का त्योहार इस बार 7 मार्च को मनाया जाएगा। फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन शाम के समय होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन के अगले दिन रंगों के साथ होली खेली जाती है। जिसे दुल्हेंडी के नाम से जाना जाता है। होला का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। आइए जानते हैं होलिका दहन का शुभ मुहूर्त और होली पूजा के नियम।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
होलिका दहन मुहूर्त : 7 मार्च को 06 बजकर 24 मिनट से 8 बजकर 51 मिनट तक
अवधि : 2 घंटा 26 मिनट
भद्रा पूंछ : 7 मार्च की मध्य रात्रि 1 बजकर 2 मिनट से 2 बजकर 19 मिनट तक।
भद्रा मुख : 7 मार्च की मध्य रात्रि 2 बजकर 19 मिनट से 4 बजकर 28 मिनट तक।
पूर्णिमा तिथि का आरंभ : 6 मार्च को शाम 4 बजकर 18 मिनट से
पूर्णिमा तिथि का समापन : 7 मार्च को शाम 6 बजकर 10 मिनट तक
होली रंगोत्सव : 8 मार्च
होलिका दहन का महत्व
धर्म ग्रंथों के अनुसार, जब हिरण्यकश्यप (राक्षसों के राजा) ने देखा कि उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु की पूजा करता है, तो वह बहुत क्रोधित हो गया। उसने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठने का आदेश दिया। दरअसल, होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे आग में नहीं जलाया जा सकता। लेकिन, होलिका आग में जलकर राख हो गई और विष्णु भक्त प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ। तभी से होलिका दहन किया जाता है। होली का त्योहार यह संदेश देता है कि इसी तरह भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए उपलब्ध रहते हैं।
होलिका दहन के समय याद रखें ये बातें
होलिका दहन के समय भद्रा काल नहीं लगना चाहिए। दरअसल, ज्योतिष शास्त्र में भद्रा काल को अशुभ समय बताया गया है। कहा जाता है कि भद्रा काल में होलिका दहन करने से सुख समृद्धि में कमी आती है। इसके अलावा पूर्णिमा प्रदोष काल में होलिका दहन करना उत्तम माना जाता है। अगर प्रदोष काल में भद्र मुख लग जाए तो भद्रा मुख समाप्त होने के बाद होलिका दहन किया जाता है।