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Thursday, October 16, 2025

इसरो ने ‘भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन’ के मॉड्यूल की पहली झलक दिखाई, 2028 में स्पेस भेजने की योजना

नई दिल्ली: इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) ने शुक्रवार को भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का पहला मॉडल प्रदर्शित किया। यह प्रदर्शन राजधानी दिल्ली में शुरू हुए दो दिवसीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस समारोह के दौरान हुआ। दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित कार्यक्रम में लगाया गया 3.8 मीटर × 8 मीटर आकार का BAS-01 का मॉडल आकर्षण का मुख्य केंद्र बना रहा।
भारत ने घोषणा की है कि वह 2028 तक बीएएस का पहला मॉड्यूल अंतरिक्ष में स्थापित करेगा। इससे भारत उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल हो जाएगा, जिनके पास अपनी कक्षा प्रयोगशाला है। अभी दुनिया में सिर्फ दो स्पेस स्टेशन हैं- अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस), जिसे पांच अंतरिक्ष एजेंसियां मिलकर संचालित करती हैं, और चीन का तियांगोंग स्टेशन। बता दें कि इसरो की योजना है कि 2035 तक कुल पांच मॉड्यूल्स को जोड़कर पूरा भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन तैयार कर लिया जाएगा।
पहला मॉड्यूल बीएएस-01 होगा, जिसका वजन लगभग 10 टन होगा। इसे धरती से 450 किलोमीटर ऊंचाई पर निचली कक्षा में स्थापित किया जाएगा। स्टेशन में पर्यावरण नियंत्रण और जीवन समर्थन प्रणाली (ईसीएलएसएस), भारत डॉकिंग सिस्टम, भारत बर्थिंग मैकेनिज्म, ऑटोमेटेड हैच सिस्टम, माइक्रोग्रैविटी में शोध और तकनीकी परीक्षण की सुविधा होगी। इसमें वैज्ञानिक इमेजिंग और क्रू के मनोरंजन के लिए व्यू-पोर्ट्स होंगे।
बता दें कि भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन को इस तरह बनाया जाएगा कि उसमें ईंधन और जरूरी फ्लूड्स की रीफिलिंग, विकिरण, तापीय और अंतरिक्ष मलबे (एमएमओडी) से सुरक्षा की व्यवस्था रहे। इसमें स्पेस सूट्स, एयरलॉक सिस्टम होंगे ताकि अंतरिक्ष यात्री बाहर निकलकर कार्य (ईवीए) कर सकें। इसके साथ ही, इसमें प्लग-एंड-प्ले इंटीग्रेटेड एवियोनिक्स लगाए जाएंगे।
भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन को भविष्य में वैज्ञानिक शोध, जीवन विज्ञान, चिकित्सा और ग्रहों के बीच अभियानों के लिए एक प्रमुख मंच बनाया जाएगा। यहां वैज्ञानिक मानव स्वास्थ्य पर माइक्रोग्रैविटी के प्रभाव का अध्ययन कर पाएंगे। यह स्टेशन लंबी अवधि तक मनुष्यों की उपस्थिति के लिए जरूरी तकनीक की जांच करने में मदद करेगा। इसके अलावा, भारत इसमें अंतरिक्ष पर्यटन की भी सुविधा विकसित करेगा। इस स्टेशन के जरिए भारत न केवल अपनी क्षमता दिखाएगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग, वैज्ञानिक खोज और युवाओं को अंतरिक्ष विज्ञान व प्रौद्योगिकी के प्रति प्रेरित करने में भी बड़ी भूमिका निभाएगा।

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