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Wednesday, October 15, 2025

सोने की तस्करी करती थीं अफगान महिला राजनयिक, दुबई से लाते समय मुंबई में पकड़ा 25 किलो सोना

मुंबई। भारत में सबसे वरिष्ठ अफगान राजनयिक जाकिया वारदक ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। असल में वह पिछले सप्ताह दुबई से करीब 19 करोड़ रुपये के 25 किलोग्राम सोने की तस्करी करने के आरोप में मुंबई हवाई अड्डे पर पकड़ी गई थीं लेकिन अपने विदेशी राजनयिक होने के चलते वह तब गिरफ्तारी से बच गई थीं। हालांकि उन्होंने अपने त्यागपत्र का कारण खुद पर हो रहे व्यक्तिगत हमलों एवं लगातार मानहानि होना बताया है लेकिन उनके त्यागपत्र को सोना तस्करी के प्रकरण से ही जोड़कर देखा जा रहा है। वारदक मुंबई में अफगानिस्तान की महावाणिज्य होने के साथ-साथ नई दिल्ली में अफगानिस्तान के कार्यवाहक राजदूत का भी कार्यभार देख रही थीं।
जाकिया ने एक्स पर पोस्ट में कहा- ‘ बहुत अफसोस के साथ मैं पांच मई, 2024 से भारत में अफगानिस्तान के वाणिज्य दूतावास और नई दिल्ली दूतावास में अपनी भूमिका से हटने के अपने फैसले की घोषणा कर रही हूं। पिछले एक साल में न केवल मुझे बल्कि मेरे करीबी परिवार और रिश्तेदारों को भी कई व्यक्तिगत हमलों और मानहानि का सामना करना पड़ा है। संगठित रूप से हो रहे इन हमलों ने मेरी भूमिका को प्रभावी ढंग से संचालित करने की मेरी क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।
साथ ही अफगान समाज में उन महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों को प्रदर्शित किया है, जो चल रहे प्रचार अभियानों के बीच आधुनिकीकरण और सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करती हैं। मेरे ऊपर हमले कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। लेकिन अब यह सहने की सीमा को पार कर गई है। ‘ वारदक ने यह भी कहा कि उन पर हो रहे हमलों का उद्देश्य उनके चरित्र को बदनाम करना और उनके प्रयासों को कमजोर करना है। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान भारत में मिले सम्मान और उन्हें दिए गए अटूट समर्थन के लिए भारत सरकार को धन्यवाद भी दिया है। करीब 19 करोड़ रुपये का सोना जकिया दुबई से अपने कपड़ों और बेल्ट आदि में छुपाकर लाई थीं लेकिन मुंबई हवाई अड्डे के विमानतल पर पकड़ी गईं थी। बताया जाता है कि तब राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआइ) ने उनसे करीब 12 घंटे पूछताछ की थी लेकिन उनके पास राजनयिक पासपोर्ट होने के कारण वह गिरफ्तारी से बच गई थीं।
विदेशी राजनयिक को कूटनीतिक छूट होती है और उनको गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। मुंबई स्थित अफगान वाणिज्य दूतावास में उनकी नियुक्ति करीब तीन साल पहले हुई थी। उस वक्त अफगानिस्तान में तालिबान का शासन लागू नहीं हुआ था। वह अफगानिस्तान की एकमात्र महिला राजनयिक भी थीं। पिछले कुछ समय से दिल्ली स्थित अफगान दूतावास का भी कामकाज वही देख रही थीं।

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