मुंबई: सरोगेसी से पैदा हुए बच्चे के मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि अंडा दाता का बच्चे पर कोई कानूनी अधिकार नहीं है और ना ही वो इसके जैविक माता-पिता होने का दावा कर सकता हैं। बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी एक मामले पर सुनवाई करते हुए की है।
कोर्ट में सुनवाई के दौरान एक महिला ने बताया था कि सरोगेसी के जरिए उसे पांच साल की जुड़वा बेटियां हुई हैं। यह सरोगेसी महिला की छोटी बहन के अंडाणु दान देने के बाद हुई थी। लेकिन अब दोनों बेटियां महिला के पति और छोटी बहन के साथ रह रही हैं।
याचिकाकर्ता के पति ने कोर्ट में दावा किया था कि उसकी साली ने अंडाणु दान दिए हैं, जिसके कारण जुड़वा बच्चों का जन्म हुआ है। इसलिए जैविक माता होने के नाते साली का बच्चों पर अधिकार है। जिस पर अदालत ने कहा कि छोटी बहन ने अंडाणु दान दिए हैं लेकिन उसके पास बच्चों की मां होने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने पति की अपील खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकार्ता को अपनी जुड़वा बेटियों से मिलने का अधिकार है।
इसके पहले ठाणे की कोर्ट ने याचिकाकर्ता महिला को अपने बच्चों से मिलने की अमुमति नहीं दी थी, लेकिन अब ठाणे कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने मां को जुड़वा बेटियों से मिलने की इजाजत दे दी है।
कोर्ट ने आदेश सुनाते हुए कहा, “याचिकाकर्ता की छोटी बहन की सीमित भूमिका एक अंडाणु दाता की थी, बल्कि एक स्वैच्छिक दाता की थी। ज्यादा से ज्यादा वह एक आनुवंशिक मां बनने के योग्य हो सकती है और इससे अधिक कुछ नहीं, लेकिन इससे उसके पास जैविक मां होने का कोई कानूनी अधिकार नहीं हो जाता।’’ जुड़वा बच्चों के माता-पिता की शादी नवंबर 2012 में रांची में हुई थी। लेकिन महिला लंबे समय तक गर्भधारण करने में असमर्थ थीं, इसलिए दिसंबर 2018 में डॉक्टरों ने उन्हें सरोगेसी का सहारा लेने की सलाह दी थी।