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Wednesday, December 3, 2025


6 या 7 सितंबर, जाने कब है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी.. ये है पूजा का शुभ मुहूर्त

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था. इस दिन पूरी दुनिया में उनका जन्मदिन मनाया जाता है. भगवान कृष्ण का प्राकट्य रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. इसलिए जन्माष्टमी के निर्धारण में रोहिणी नक्षत्र का भी ध्यान रखते हैं. इस साल जन्माष्टमी की तारीख को लेकर बहुत कन्फ्यूजन है. कोई 6 सितंबर तो कोई 7 सितंबर को जन्माष्टमी का त्योहार बता रहा है. आइए आपको बताते हैं कि आखिर जन्माष्टमी की सही तिथि क्या है.

कब है जन्माष्टमी

इस बार भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि 06 सितंबर को दोपहर 03.38 आरम्भ होगी और इसका समापन 7 सितंबर को शाम में 04.14 बजे होगा. इस दौरान रोहिणी नक्षत्र पूरी रात्रि विद्यमान रहेगा. ज्योतिषविदों की मानें तो इस साल गृहस्थ लोग 6 सितंबर को जन्माष्टमी मनाएंगे. जबकि वैष्णव संप्रदाय के लोग 7 सितंबर को जन्माष्टमी का त्योहार मनाएंगे.

ज्योतिषविदों का कहना है कि इस साल गृहस्थ जीवन के लोग 6 सितंबर को जन्माष्टमी का त्योहार मनाएंगे. जन्माष्टमी की पूजा का श्रेष्ठ मुहूर्त भी 6 सितंबर को रात 11 बजकर 56 मिनट से लेकर देर रात 12 बजकर 42 मिनट तक रहेगा.

जन्माष्टमी पर सामान्यत: बाल कृष्ण की स्थापना की जाती है. आप अपनी मनोकामना के आधार पर जिस स्वरूप को चाहें स्थापित कर सकते हैं. प्रेम और दाम्पत्य जीवन के लिए राधा कृष्ण की मूर्ति स्थापित कर सकते हैं. संतान के लिए बाल कृष्ण की मूर्ति स्थापित कर सकते हैं. धन प्राप्ति के लिए कामधेनु गाय के साथ विराजमान श्रीकृष्ण की प्रतिमा स्थापित कर सकते हैं.

जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण के श्रृंगार में फूलों का खूब प्रयोग करें. पीले रंग के वस्त्र और चंदन की सुगंध से भगवान का श्रृंगार करें. इसमें काले रंग का प्रयोग बिल्कुल न करें. वैजयंती के फूल अगर कृष्ण जी को अर्पित करें तो सर्वोत्तम होगा.

जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण को पंचामृत जरूर अर्पित करें. उसमें तुलसी दल भी जरूर डालें. मेवा, माखन और मिसरी का भोग भी लगाएं. कुछ जगहों पर धनिये की पंजीरी भी अर्पित की जाती है.

जन्माष्टमी की सुबह स्नान करके व्रत, पूजा का संकल्प लें. दिनभर जलाहार या फलाहार ग्रहण करें और सात्विक रहें. मध्य रात्रि को भगवान कृष्ण की धातु की प्रतिमा को किसी पात्र में रखें. उसे पहले दूध, फिर दही, फिर शहद व शक्कर और अंत में घी से स्नान कराएं. इसी को पंचामृत स्नान कहते हैं. इसके बाद कान्हा को जल से स्नान कराएं.

ध्यान रखें कि अर्पित की जाने वाली चीजें शंख में डालकर ही अर्पित करें. पूजा करने वाला व्यक्ति इस दिन काले या सफेद वस्त्र धारण ना करें. मनोकामना के अनुसार मंत्र जाप करें. प्रसाद ग्रहण करें और दूसरों में भी बांटें.

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