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Monday, June 16, 2025

पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती आज, जाने उनके बारे में कुछ खास…

25 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती है। अटल बिहारी वाजपेयी न सिर्फ देश के प्रधानमंत्री ही रहे बल्कि एक हिन्दी कवि, पत्रकार और प्रखर वक्ता भी थे। नेहरु-गांधी परिवार के प्रधानमंत्रियों के बाद अटल बिहारी वाजपेयी का नाम भारत के इतिहास में उन चुनिंदा नेताओँ में शामिल होगा जिन्होंने सिर्फ़ अपने नाम, व्यक्तित्व और करिश्मे के बूते पर सरकार बनाई।

एक स्कूल टीचर के घर में पैदा हुए वाजपेयी के लिए शुरुआती सफ़र ज़रा भी आसान न था। 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर के एक निम्न मध्यमवर्ग परिवार में जन्मे वाजपेयी की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर के ही विक्टोरिया ( अब लक्ष्मीबाई ) कॉलेज और कानपुर के डीएवी कॉलेज में हुई। उन्होंने राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर किया और पत्रकारिता में अपना करियर शुरु किया। उन्होंने राष्ट्र धर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन का संपादन किया।

1951 में वो भारतीय जन संघ के संस्थापक सदस्य थे। अपनी कुशल वक्तृत्व शैली से राजनीति के शुरुआती दिनों में ही उन्होंने रंग जमा दिया, वैसे लखनऊ में एक लोकसभा उप चुनाव में वो हार गए थे। 1957 में जन संघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया। लखनऊ में वो चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी ज़मानत ज़ब्त हो गई लेकिन बलरामपुर से चुनाव जीतकर वो दूसरी लोकसभा में पहुंचे। अगले पाँच दशकों के उनके संसदीय करियर की यह शुरुआत थी।

1968 से 1973 तक वो भारतीय जन संघ के अध्यक्ष रहे, विपक्षी पार्टियों के अपने दूसरे साथियों की तरह उन्हें भी आपातकाल के दौरान जेल भेजा गया। 1977 में जनता पार्टी सरकार में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया। इस दौरान संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में उन्होंने हिंदी में भाषण दिया और वो इसे अपने जीवन का अब तक का सबसे सुखद क्षण बताते हैं। 1980 में वो बीजेपी के संस्थापक सदस्य रहे। 1980 से 1986 तक वो बीजेपी के अध्यक्ष रहे और इस दौरान वो बीजेपी संसदीय दल के नेता भी रहे।

अटल बिहारी वाजपेयी अब तक नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए। दूसरी लोकसभा से तेरहवीं लोकसभा तक। बीच में कुछ लोकसभाओं से उनकी अनुपस्थिति रही, ख़ासतौर से 1984 में जब वो ग्वालियर में कांग्रेस के माधवराव सिंधिया के हाथों पराजित हो गए थे। 1962 से 1967 और 1986 में वो राज्यसभा के सदस्य भी रहे।

16 मई 1996 को वो पहली बार प्रधानमंत्री बने लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से 31 मई 1996 को उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा, इसके बाद 1998 तक वो लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे। 1998 के आमचुनावों में सहयोगी पार्टियों के साथ उन्होंने लोकसभा में अपने गठबंधन का बहुमत सिद्ध किया और इस तरह एक बार फिर प्रधानमंत्री बने लेकिन एआईएडीएमके द्वारा गठबंधन से समर्थन वापस ले लेने के बाद उनकी सरकार गिर गई और एक बार फिर आम चुनाव हुए।

1999 में हुए चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साझा घोषणापत्र पर लड़े गए और इन चुनावों में वाजपेयी के नेतृत्व को एक प्रमुख मुद्दा बनाया गया। गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ और वाजपेयी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली।

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