नई दिल्ली/ दोहा। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ब्रिक्स देशों द्वारा व्यापार के लिए नई मुद्रा लाने को लेकर चल रही अटकलों पर स्थिति साफ की है। उन्होंने कहा कि ऐसी कोई योजना नहीं है। अमेरिकी डॉलर से प्रतिस्पर्धा करने के लिए नई मुद्रा शुरू करने के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया गया है। उनका ये बयान अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा ब्रिक्स देशों के डी-डॉलरीकरण की नीति अपनाने या डॉलर से दूर जाने की स्थिति में 100 प्रतिशत टैरिफ लगाने की धमकी के बाद आया है।
जयशंकर ने पहले ट्रंप प्रशासन के साथ भारत के सकारात्मक संबंधों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा, पहले ट्रंप प्रशासन के साथ हमारे बहुत ही अच्छे और ठोस संबंध थे। हां कुछ मुद्दे थे जिनमें ज्यादातर व्यापार से संबंधित मुद्दे थे, लेकिन बहुत सारे मुद्दे थे जिन पर ट्रंप बहुत खुले विचारों के था। मैं लोगों को याद दिलाना चाहता हूं कि ट्रंप प्रशासन में ही क्वाड को फिर से शुरू किया गया था। विदेश मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप के बीच व्यक्तिगत संबंध हैं जिसने दोनों देशों के बीच मजबूत द्विपक्षीय संबंधों में योगदान दिया है। उन्होंने कहा, जहां तक ब्रिक्स को लेकर ट्रंप की टिप्पणी का मुद्दा है तो हमने हमेशा से कहा है कि भारत कभी भी डॉलर को कमजोर करने या उसे छोड़ने के पक्ष में नहीं रहा है। ब्रिक्स देश वित्तीय लेनदेन पर चर्चा करते हैं। अमेरिका हमारा सबके बड़ा व्यापार भागीदार है और हमें हमें डॉलर को कमजोर करने में कोई दिलचस्पी नहीं है।
जयशंकर ‘नए युग में संघर्ष समाधान’ विषय पर दोहा फोरम पैनल के 22वें संस्करण को संबोधित कर रहे थे। कतर के विदेश मंत्री शेख मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान बिन जसीम अल थानी और नॉर्वे के विदेश मंत्री एस्पेन बार्थ ईदे भी मौजूद थे। विदेशमंत्री 6 से 9 दिसंबर तक कतर और बहरीन की आधिकारिक यात्रा पर हैं। पश्चिम एशिया में चल रहे संघर्ष और रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के बीच विदेश मंत्री ने कहा कि संघर्षों को सुलझाने के लिए और अधिक अभिनव और सहभागी कूटनीति की जरूरत है। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध में अब यह महसूस किया जाने लगा है कि लड़ाई जारी रखने के बजाय बातचीत शुरू करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि राजनयिकों को यह समझना होगा कि यह एक गंदी दुनिया है। यह भयानक है। यहां संघर्ष है, लेकिन इन्हीं सब कारणों से दुनिया के राजनयिकों को आगे बढ़कर पहल करने की जरूरत भी है।
विदेश मंत्री ने कहा कि 60 और 70 के दशक का युग बहुत पीछे चला गया है, जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद या कुछ पश्चिमी ताकतें ही युद्ध का समाधान निकालने के लिए आगे आती थीं। अब सभी देशों को इसके लिए आगे आना आवश्यक है। इसलिए उन्हें लगता है कि यह गहर कूटनीति का समय है। अभिनव कूटनीत का समय है। रूस और यूक्रेन युद्ध में भारत की भूमिका के सवाल पर उन्होंने कहा कि भारत एक ऐसे साझा सूत्र की तलाश कर रहा है जिस पर किसी भी समय आगे बढ़ा जा सके।जयशंकर से जब पूछा गया कि क्या अमेरिका भारत को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहा है तो उन्होंने इसका बहुत ही चतुर जवाब दिया। उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, हम अमेरिका को भारत के पाले में लाने का प्रयास कर रहे हैं। सीरिया में अशांति पर उन्होंने कहा कि इससे वहां रहने वाले भारतीय प्रवासियों के लिए खतरा पैदा हो गया है और समुद्र के रास्ते माल की ढुलाई की लागत भी बढ़ गई है।
‘ब्रिक्स की डी-डॉलरीकरण की योजना नहीं’; ट्रंप की चेतावनी के बाद विदेश मंत्री जयशंकर ने साफ की स्थिति
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