देहरादून: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के जन्मदिन को संकल्प दिवस के रूप में मनाने के की पहल का पर्यावरणविद् पद्मश्री कल्याण सिंह रावत ने सराहना की है। पद्मश्री कल्याण सिंह रावत ने कहा कि पर्यावरण के कुछ संकल्पो को आत्मसात करने से यह दिन और भी सार्थक हो जायेगा।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों के समृद्ध बुग्यालों को संरक्षित करने की बहुत आवश्यकता है। बुग्यालों से जुड़े हुए गांवों के नवयुवकों को पर्यटन और जैवविविधता बचाने के लिए प्रशिक्षण दिया जाना भी जरूरी हैं। नवयुवकों को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए यह एक सफल कदम होगा। बुग्यालों के आध्यात्मिक, पर्यटन और स्वच्छता जैसी व्यवस्थाओं को बनाने में स्थानीय युवकों और ग्रामीणों का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है।
पद्मश्री कल्याण सिंह रावत ने यह भी सुझाव दिए कि उत्तराखंड में 2000 मीटर से ऊपर वृक्षों के पातन पर लगे प्रतिबंध से चीड़ प्रजाति को मुक्त कराने के प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। चीड़ वनों का वैज्ञानिक प्रबंधन करके उनसे लघु उद्योगों के लिए लीसा निकालने के प्रयासों को चलाये जाने से राज्य की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और स्थानीय नवयुवकों को रोजगार भी मिलेगा। उत्तराखंड के कुछ ऐसे गांवों का चयन किया जाये जिनमें हमारी स्थापत्य कला अभी भी जिंदा है ऐसे गांवो को संरक्षण प्रदान करके उनको राज्य धरोहर गांव व पर्यटन गांव के रूप में विकसित किया जाना श्रेयस्कर है। इस से हमारी प्राचीन कला, संस्कृति तथा स्थापत्य कला संरक्षित रह सकेगी। ऐसे गांवों को पर्यटक व होम स्टे के रूप में बिकसित कर स्थानीय नवयुवकों को स्वरोजगार के अवसर भी प्राप्त होंगे।
हिमालयी क्षेत्र में जल श्रोत, नदियां तेजी से सूख रही हैं, जिससे जल की गम्भीर समस्या उत्पन्न हो रही है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के माध्यम से वर्षा पर निर्भर नदियों (rain-fed) को पुनर्जीवित किया जाना बहुत आवश्यक है। उत्तराखंड के गांवों में जो पेड़ बहुत पुराने गए हैं तथा गांव वासियों के लिए आपदा का संभावित कारण बने हुए हैं ऐसे पेड़ों को हटाने के लिए प्रयास किए जाने आवश्यक है। इससे जहां संभावित आपदाओं को न्यूनीकरण में मदद मिलेगी वहीं गांव के आसपास इन पेड़ों में आश्रय लेने वाले बंदरों के आतंक से भी निजात मिल सकती है। ऐसे पेड़ों को हटाकर गांव में नई प्रजाति के फलदार पेड़ों को लगाने की जो मुहिम शुरू हुई है वह सराहनीय है।
उत्तराखंड में जिन नदियों के ऊपर छोटे या बड़े पुल बने हैं उन पर सम्बन्धित नदियों के नाम व उनके उद्गम स्थलों के नाम के बोर्ड अंकित किया जाना भी एक अच्छी पहल होगी, जिससे पर्यटक और शोधार्थियों को नदी की समुचित जानकारी मिल सके और लुप्त हो रही नदी संस्कृति को संरक्षण मिल सके।