उत्तराखंड के पूर्व सीएम और चुनाव संचालन समिति के अध्यक्ष हरीश रावत की facebook पोस्ट ने कांग्रेस खेमे में सनसनी फैला दी है. हाल में ही समाप्त हुई पहले चरण की परिवर्तन यात्रा के बाद हरीश रावत ने लिखा प्लस प्वाइंट्स के साथ पार्टी के लिए बड़ी ऐसैट्स हो सकता हूँ, लेकिन मुझे लगता है कि मेरे कुछ दोस्त मुझे बंधनयुक्त रखना चाहते हैं. पिच जटिल है यदि मैं बहुत संभल करके खेलूंगा, बड़ी खुटूर-खुटूर तरीके से खेलूंगा तो हमारे प्रतिद्वंद्वियों के पास जो सकारात्मक चीजें हैं, उनके चलते पार्टी की स्पष्ट जीत कठिन हो जाएगी और यदि मैं अपने ढंग से खेलता हूँ जो मेरा स्वाभाविक खेल है, तो मैं हालात को बदल सकता हूं और पूरी तरीके से अपने प्रतिद्वंद्वियों को डिफेंसिव बना सकता हूं. मगर हमारी जैसी बड़ी पार्टी में इतनी स्वतंत्रता किसी को दी जाएगी इस पर मेरे मन में स्वयं संदेह है, अभी मैं प्रथम चरण की यात्रा का और गहराई से विश्लेषण करूंगा, और दूसरे चरण के समाप्ति के बाद में मुझे कहां पर खड़ा रहना चाहिये इस पर मैं अवश्य कुछ सोचूंगा”,
अजीब मनोस्थिति में हरदा
हरीश रावत लिखते हैं कि “अजीब सी मनोस्थिति में हूँ. अभियान समिति का अध्यक्ष हूं, चुनाव की सारी प्रक्रिया की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर है. लेकिन मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि, मैं समझते हुये भी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने की स्थिति में हूँ नहीं. यदि मैं प्रयास करूंगा तो कई तरीके के विरोधाभास उभरकर के सामने आ जाएंगे. मैं स्वभावतः एक संवेदनशील व्यक्ति हूँ, परिस्थितियां मुझसे चुनौती को स्वीकार करवाती हैं और मैं चुनौतियों के आगे डठकर के खड़ा हो जाता हूं. चुनौती हमारे सामने यह है कि जो संगठनात्मक कमजोरी है जो बिल्कुल स्पष्ट तौर पर दिखाई दे रही है, हममें और प्रमुख विपक्षी दलों में, साधनों की जो कमी है वह भी स्पष्ट तौर पर दिखाई दे रही है और यह भी मुझे मानने में कोई गुरेज नहीं है कि हमसे हमारे प्रतिद्वंदी बेहतर प्रबंधकीय क्षमता वाले हैं. मेरे सामने लाभ की स्थिति केवल इतनी है कि मैं पिछले बार का ठुकराया हुआ व्यक्ति हूं जो भूतपूर्व मुख्यमंत्री है.”
बीस साल बाद मिला समर्थन
हरीश रावत ने लिखा कि जब 2001 में मैं, इस तरीके की यात्राओं का आयोजन करता था तो उस समय जो उत्सुकता लोगों में रहती थी और जो समर्थन मिलता था, आज वही समर्थन लोगों में दिखाई दे रहा है. हां एक अंतर जरूर है, उस समय कांग्रेसजनों को बहुत बड़ी अपेक्षा नहीं थी, काम कर रहे थे, भागीदारी उस समय भी पूर्ण थी. मगर उन्हें ऐसा विश्वास नहीं था कि हम 2002 में पूर्ण बहुमत पाकर के सरकार बनाने जा रहे हैं. आज कार्यकर्ताओं को यह लगता है कि वो सरकार बना सकते हैं. इसलिए प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है, हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा दिखाई दे रही है, नये-पुराने लोग आगे आये हैं.