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Tuesday, December 16, 2025


रामपुर तिराहा मामले में अदालत ने पी.ए.सी. के दो पुलिस कर्मियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई

देहरादून।  अपर सत्र न्यायाधीश, मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) की विचारण अदालत ने आज रामपुर तिराहा मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) मामले से संबंधित एक केस में पी.ए.सी. के तत्कालीन पुलिसकर्मी  मिलाप सिंह एवं  वीरेंद्र प्रताप को आजीवन कारावास के साथ 1,00,000/- रु. के जुर्माने की सजा सुनाई। उन्हें अदालत ने दिनाँक 15.03.2024 को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376 (2) (जी), 392, 354 एवं 509 के तहत दोषी ठहराया और सजा पर सुनवाई हेतु आज अर्थात 18.03.2024 की तिथि तय की गई थी। विचारण अदालत ने यह भी आदेश दिया कि जुर्माने की पूरी राशि पीड़िता को दी जाएगी।

यह आरोप है कि उत्तराखंड संघर्ष समिति ने दिनाँक 02.10.1994 को लाल किला, दिल्ली में एक रैली का आयोजन किया था एवं उक्त रैली में भाग लेने के लिए पहाड़ी क्षेत्रों से लोग बसों में दिल्ली आ रहे थे। उत्तर प्रदेश सरकार ने रैली में हिस्सा लेने वालों को रोकने के लिए जगह-जगह पुलिस बल तैनात कर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे। जब रैली करने वाले लोग, दिनाँक 01-02.10.1994 की रात्रि में रामपुर तिराहा, मुजफ्फरनगर के पास पहुंचे तो पुलिस ने उन्हें रोक लिया और हिरासत में ले लिया। कुल 345 रैलीकर्ताओं को हिरासत में लिया गया, जिसमें से 47 महिलाएं थीं। हिरासत में ली गई महिला रैलीकर्ताओं के साथ बलात्कार व छेड़छाड़ के मामले सामने आए थे।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष उत्तराखंड संघर्ष समिति द्वारा समादेश याचिका संख्या 32928 वर्ष 1994, दायर की गई थी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के दिनांक 07.10.1994 के आदेश के अनुपालन में, सीबीआई ने प्रारंभिक जांच (पीई) की। सीबीआई द्वारा प्रस्तुत प्रारंभिक जांच रिपोर्ट के आधार पर, माननीय उच्च न्यायालय ने सीबीआई को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया। तदनुसार, सीबीआई ने दिनाँक 25.01.1995 को विभिन्न आरोपों पर मामला दर्ज किया कि रैली में हिस्सा लेने वालों को ले जा रही एक बस को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर रोका गया एवं बस के शीशे, हेड लाइट और खिड़की के शीशे तोड़ दिए गए तथा तैनात पुलिस कर्मियों ने रैली में शामिल लोगों के साथ दुर्व्यवहार किया। यह भी आरोप है कि दोनों पुलिसकर्मी पी.ए.सी. के थे, जिन्होंने बस में घुसकर पीड़िता के साथ छेड़छाड़ और बलात्कार सहित अपराध किए थे। जांच पूरी होने के बाद, सीबीआई ने दिनाँक 21.03.1996 को आरोप पत्र दायर किया। विचारण के दौरान 15 गवाहों से पूछताछ की गई। विचारण अदालत ने दोनों आरोपियों को कसूरवार पाया और उन्हें तदनुसार सजा सुनाई।

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