देहरादून: उत्तराखंड में 14 फरवरी को हुए मतदान के बाद अब पार्टियां अपनी-अपनी जीते के दावे कर रही है। इसके अलावा प्रदेश में अब कयासों का दौर शुरू हो गया है। सत्तारूढ़ भाजपा जहां दोबारा सत्ता में वापसी का दावा कर रही है तो वहीं कांग्रेस भी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है। जनता ने अपना फैसला सुना दिया है और ये फैसला EVM में कैद हो चुका है। अब 10 मार्च को पता चलेगी कि उत्तराखंड में सत्ता में कौन सी पार्टी काबिज होती है।
बता दें कि 2022 के चुनाव के लिए उत्तराखंड में 65.10 प्रतिशत मतदान हुआ है। इस बार आंकड़ा पिछले चुनाव के इर्द-गिर्द ही है। मतदान को लेकर राजनीतिक विश्लेषक और पार्टियां अलग-अलग आकलन कर रही हैं। 2017 के चुनाव में मोदी मैजिक के चलते भाजपा ने उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई थी। अब सवाल ये है कि क्या उत्तराखंड में इस बार भी मोदी मैजिक कायम है या नहीं ? हालांकि भाजपा को विश्वास है कि उत्तराखंड की जनता में मोदी को लेकर अब भी क्रेज बरकरार है और उसे इस बार भी फायदा जरूर मिलेगा।
वहीं, कांग्रेस महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और अवैध खनन जैसे मुद्दों के साथ चुनाव में जनता के द्वार गई। इसके अलावा कांग्रेस मोदी मैजिक पर कह रही है कि अगर भाजपा ने पांच साल विकास किया है तो उसे मोदी मैजिक की जरूरत क्यों पड़ रही है। वहीं चारधाम चार काम जैसे लोक लुभावनी घोषणाओं ने भी जनता का ध्यान खिंचा है। इसलिए उसे विश्वास है कि उत्तराखंड की जनता ने उसके हक में मतदान किया है।
2017 के चुनाव में भाजपा ने 57 सीटें पाकर प्रचंड बहुमत हासिल किया था, वहीं कांग्रेस 11 सीटों पर सिमट गई थी। इनमें एक मात्र सीट हल्द्वानी की ऐसी थी, जो इंदिरा ह्दयेश ने साढ़े छह हजार वोटों के अंतर से जीती थी, जबकि दो सीटें एक हजार से भी कम अंतर, चार सीटें दो हजार से भी कम अंतर और चार सीटें चार हजार से भी कम अंतर से कांग्रेस ने जीती थीं। भाजपा के पूरण सिंह फर्तवाल 148 वोटों से जीते थे तो कांग्रेस के दिग्गज नेता गोविंद सिंह कुंजवाल को मात्र 399 वोटों से जीत मिली थी। वहीं भाजपा की रेखा आर्य ने मात्र 710 तो भाजपा की ही मीना गंगोला ने मात्र 805 वोटों से जीत दर्ज की थी। माना जा रहा है कि बीते चुनाव में मोदी मैजिक की वजह से ऐसा हुआ था, इस बार हार-जीत का यह अंतर घट-बढ़ सकता है।