देहरादून: ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी में आज जल संरक्षण पर राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन हुआ। जिसमें पानी के संरक्षण, प्रबंधन और चुनौतियों के लिए उपचार पर मंथन हुआ।आईआईटी रुड़की के डब्ल्यूआरडी एंड एम विभाग के प्रोफेसर डॉ दीपक खरे ने मुख्य वक्ता के रूप में कहा कि अगर हमें सतत विकास चाहिए तो जल संरक्षण इसका महत्वपूर्ण घटक है। हम अपनी दिनचर्या मे जाने अनजाने ही पानी की बर्बादी कर रहे हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि 1 किलो टमाटर को धोने के लिए के लिए 14 लीटर पानी की बर्बादी होती है। आने वाली पीढ़ी को जल संसाधन बचाने के लिए हमे रेन वाटर हार्वेस्टिंग करनी होगी। वर्षा जल संचय करने की कई पद्धतियां है इसके बारे में समाज को जागरूक करना होगा।
वाटरलू यूनिवर्सिटी, कनाडा के प्रोफेसर डॉ पंकज गुप्ता ने भूमिगत जल में मिल रहे हानिकारक रसायनों की समस्या पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आर्सेनिक जैसे केमिकल पानी में मिल रहे हैं। जिससे कैंसर जैसी बीमारियां तेजी से बढ़ रही है। हमें इसके लिए खेती में प्रयोग होने वाले रसायन में बदलाव लाना होगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि किसान जहां एक खेती के लिए कई किलोग्राम पारंपरिक यूरिया का इस्तेमाल करते हैं वहीं अगर किसान माइक्रो यूरिया का इस्तेमाल करें तो 1 किलो माइक्रो यूरिया में उतनी ही फसल प्राप्त कर सकते हैं।
राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की के प्रोफेसर सोबन सिंह रावत ने बताया कि पहाड़ी क्षेत्रों में हजारों जल स्रोत ढूंढ कर उनकी जियो टैगिंग हो रही है। जिससे ऑनलाइन ही इन जल स्रोत्रो बारे में जानकारी मिलेगी जिनसे इनके ट्रीटमेंट करने में और सूखे स्रोतों को पुनर्जीवित करने में सहायता मिलेगी। उन्होंने कहा कि झरनों के पुनरुत्थान और प्रबंधन करने से जल संपदा का संरक्षण होगा।
कार्यशाला में पंतनगर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर दीपक कुमार और ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के प्रबंधन अध्ययन विभाग के प्रोफेसर डॉ एमपी सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
ग्राफिक एरा डीम्ड विश्वविद्यालय के सिविल इंजीनियरिंग विभाग एवं आईडब्लूआरएस, आईईआई स्टूडेंट चैप्टर्स की आयोजित इस कार्यशाला में सिविल विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ संजीव कुमार, अमित कुमार शर्मा, नितिन मिश्रा के साथ-साथ अन्य फैकेल्टी मेंबर उपस्थित रहे।