नई दिल्ली: प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों को हटाने वाले विवादित विधेयकों की जांच के लिए बनी जेपीसी का आम आदमी पार्टी ने बहिष्कार किया है। इससे पहले तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी भी इससे बाहर रह चुकी हैं। आप सांसद संजय सिंह ने कहा कि सरकार का मकसद विपक्षी नेताओं को फंसाना और उनकी सरकारें गिराना है।
केंद्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को हटाने संबंधी तीन अहम बिलों की जांच के लिए बनाई गई संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को विपक्षी दल लगातार खारिज कर रहे हैं। तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बाद अब आम आदमी पार्टी (आप) ने भी रविवार को साफ कर दिया कि वह इस समिति में शामिल नहीं होगी। आप ने आरोप लगाया कि इन बिलों का उद्देश्य विपक्षी दलों की सरकारों को गिराना और नेताओं को फर्जी मामलों में फंसाना है।
राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा कि उनकी पार्टी जेपीसी में कोई भी सदस्य नामित नहीं करेगी। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि भ्रष्टाचारियों का सरगना भ्रष्टाचार के खिलाफ बिल कैसे ला सकता है। नेताओं को झूठे मामलों में फंसाना, जेल में डालना और सरकारें गिराना ही इस बिल का असली मकसद है। इसलिए अरविंद केजरीवाल जी और आम आदमी पार्टी ने फैसला किया है कि हम जेपीसी में शामिल नहीं होंगे।
इससे पहले शनिवार को तृणमूल कांग्रेस ने घोषणा की थी कि वह जेपीसी में कोई सदस्य नहीं भेजेगी। पार्टी के वरिष्ठ नेता डेरेक ओ’ब्रायन ने समिति को फर्जी और बेमानी करार दिया। उन्होंने कहा कि यह समिति भाजपा के बहुमत के चलते झुकी हुई है और इसका कोई मतलब नहीं है। समाजवादी पार्टी ने भी संकेत दिए हैं कि वह इसमें हिस्सा नहीं लेगी। पार्टी सूत्रों का कहना है कि यह समिति विपक्ष की आवाज दबाने का तरीका भर है।
20 अगस्त को लोकसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने तीन अहम विधेयक पेश किए केंद्रशासित प्रदेश संशोधन विधेयक 2025, संविधान 130वां संशोधन विधेयक 2025 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन संशोधन विधेयक 2025। इन बिलों में यह प्रावधान है कि यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई मंत्री गंभीर आरोपों में लगातार 30 दिन तक गिरफ्तार रहता है, तो उसे पद से हटाया जा सकेगा। इन विधेयकों पर सदन में भारी हंगामा हुआ, विपक्षी सांसदों ने बिल की प्रतियां फाड़ दीं और सत्ता पक्ष के सदस्यों से तीखी नोकझोंक हुई।
लोकसभा और राज्यसभा दोनों ने तय किया है कि इन विधेयकों को 21 लोकसभा और 10 राज्यसभा सदस्यों वाली जेपीसी के पास भेजा जाएगा। समिति को निर्देश दिया गया है कि वह अपनी रिपोर्ट शीतकालीन सत्र में पेश करे, जो नवंबर के तीसरे सप्ताह में बुलाया जा सकता है। हालांकि, विपक्षी दलों के लगातार बहिष्कार के कारण इस समिति की विश्वसनीयता और उपयोगिता पर सवाल उठ रहे हैं। सरकार का कहना है कि ये बिल जवाबदेही सुनिश्चित करेंगे, लेकिन विपक्ष का आरोप है कि भाजपा इसका इस्तेमाल अपनी राजनीतिक मजबूती के लिए करना चाहती है।
मंत्रियों की गिरफ्तारी वाले बिल पर टीएमसी-सपा के बाद AAP भी JPC से बाहर
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