देहरादून: लगभग तीन दशक पूर्व उत्तराखंड के सीमांत गांव में स्कूल के आभाव में तमाम बच्चों के साथ जितेंद्र हनेरी 14 किलोमीटर दूर पढ़ाई के लिये जाते थे। शाम को स्कूल से लौटते वक्त बफीर्ले पहाड़ों के बीच खतरनाक पगडंडियों से गुजरते वक्त वो अक्सर सोचते की शिक्षा प्राप्त करने के लिये जो संघर्ष उनके तरह सीमांत गांवों में रहने वाले बच्चे कर रहे हैं। वक्त आने पर वो कुछ ऐसा करेंगे कि उनकी तरह आगे की पीढ़ी को शिक्षा के लिये इतना संघर्ष न करना पड़े।
समय बीता और जितेंद्र कुमार उच्च शिक्षा प्राप्त करने अपने राज्य की राजधानी देहरादून आ गये। गांव से शहर पहुंचे जितेंद्र के पास उस वक्त केवल दो ही चीजें थी। एक थी कॉलेज की फीस और दूसरा बचपन से पल रहा सपना। अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई में अव्वल रहने के बाद आज जितेंद्र हनेरी दुनिया की बड़ी आईटी कंपनियों को चुनौती दे रहे है। उनकी सफलता की कहानी जितना आज की पीढ़ी को उत्साहित करती है, उतना ही ये संदेश भी देती है कि लक्ष्य के प्रति अगर निर्णायक संघर्ष और जुनून हो तो मुकम्मल सफलता मिल सकती है। राज्य के सबसे दुरस्थ सीमांत जिला पिथौरागढ़ के बुंगाछीना गांव में जन्मे जितेंद्र हनेरी की ये कहानी आज राज्य में सफलता के नई इबारत लिख रही है।
आज से दस साल पहले 2008 में इंजीनियरिंग कॉलेज से पास आउट इंजीनियर जितेंद्र हनेरी को उनकी अकादमिक परिणामों के चलते लाखों रुपयों का सालाना पैकेज बहुराष्ट्रीय कंपनी से मिला तो परिजनों के साथ ही दोस्तों ने भी खूब बधाई दी। लेकिन तब तक जितेंद्र हनेरी किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी करने के बजाये अपने राज्य में ही कुछ अलग करने की ठान चुके थे। कॉलेज में तीसरे साल की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने अपने तीन साथियों के साथ कंपनी का गठन कर लिया। ये कंपनी देश में सबसे युवा इंजीनियरों की कंपनी बनी। उन्होंने पासआउट होने से पहले ही लाइब्रेरी ऑटोमेशन का सॉफ्टवेयर का विकास कर लिया था। लेकिन जब जीवन का असली संघर्ष शुरू हुआ तो कंपनी के अन्य साथियों ने साथ छोड़ बहुराष्ट्रीय कंपनियों में नौकरी शुरू कर दी। लेकिन जितेंद्र ने हिम्म्त नहीं छोड़ी और जल्द ही उन्होंने कई ऐसे सॉफ्टवेयर का निर्माण किया, जिससे उनकी सफलता को नये पंख लगे।
आज उनके पास पांच पेटेंट है। जिसमें प्रमुख रूप से साइबोर्ग ईआरपी, साइबोर्ग एलएमएस, साइबोर्ग एग्जाम, लिपसाइब और निपुण एप्लिकेशन है। आज उनकी कंपनी का टर्नओवर करोड़ों रुपयों में है। जिसमें उनके साथ लगभग डेढ़ सौ कर्मचारी काम करते हैं। उनके बनाये सॉफ्टवेयर आज राज्य के बड़े विश्व विद्यालयों के साथ ही कई प्रतिष्ठानों में चल रहे हैं। जितेंद्र हनेरी ने देश का पहला स्वदेशी ऑनलाइन कॉन्फ्रेंस एप्िलकेशन (लर्निंग मैनेजमेंट सिस्टम) का विकास किया है। जो अमेरिका के गुगल मीट और चीन के जूम कॉन्फ्रेंस एप को टक्कर देने जा रहा है। जितेंद्र कुमार की कंपनी में राज्य के सबसे युवा और गरीब स्टूडेंट को जॉब मिलती है। जितेंद्र कुमार बताते हैं वो जब छोटे थे तो उनका स्कूल उनके गांव से 14 किलोमीटर दूरी पर था। जब वो स्कूल से थककर घर लौटते थे तो अक्सर सोचा करते थे कि वो अपने गांव में ही बच्चों लिये स्कूल और उच्च शिक्षण संस्थान खोलेंगे। आज उन्होंने अपने दुरस्थ गांव में गरीब और दलित बच्चों के लिये ये कार्य भी पूरा कर लिया है। बच्चों को अब उच्च तनकीकी प्रोफेशनल कोर्स लिये वहां से 600 किलोमीटर दूर राज्य की राजधानी देहरादून का रुख नहीं करना पड़ता।
गांव के हिंदी मीडियम स्कूल से पढ़े जितेंद्र आज बड़ी कंपनी के सीईओ है। उनके सॉफ्टवेयर के सामने कई बहूराष्ट्रीय कंपनी फैल हो चुकी है। अब वो चाहते है कि वो अपने गांव में बच्चों के लिये ऐसा संस्थान का विकास करे, जिससे गांव के बच्चों को शुरूआती शिक्षा प्राप्त करते वक्त ही आईटी सेक्टर से जुड़ने में मदद मिले। जितेंद्र बताते हैं हम ऐसा इसलिये करना चाहते हैं, ताकि गांव के मैधाावियों को मौका मिले और मैधावी होने के चलते वो आभाव में छोटी मोटी मजदूरी कर गुरबत में जीवन न बिताये।
सबसे युवा पेटेंटधारी
36 साल के जितेंद्र हनेरी आज राज्य के सबसे युवा पेटेंटधारी है। उनके खाते में पांच पेटेंट है। उनके कई पेटेंट को अमेरिका और यूएई की बड़ी आईटी कंपनी खरीदना चाहती थी। लेकिन उन्होंने उन कंपनियों को पेटेंट बेचने के बजाये राज्य में ही बेहद मामूली दामों में उसे शिक्षण संस्थानों को उपयोग के लिये दिया। आज देश की 18 विश्व विद्यालयों में उनके एप्लिकेशन चल रहे है। जिसमें उत्तराखंड में कुमाउं यूनिवर्सिटी, ग्राफिक एरा यूनिवर्सिटी, उत्तरांचल यूनिवर्सिटी, एसजीआरआर यूनिवर्सिटी, देवभूमि यूनिवर्सिटी, क्वाटंम यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ इंजीनियरिंग रूड़की है। जितेंद्र बताते है उनके सॉफ्टवेयर के चलते तमाम शिक्षण संस्थान अपने संसाधनों का बेहतर उपयोग कर पाते हैं। देश में पहली बार उत्तराखंड के विश्वविद्यालयों में ऑनलाइन एग्जाम के साथ ही ऑनलाइन कॉपी चेक की गई।
खेतीबाड़ी में भी अव्वल
जितेंद्र कुमार जितना तकनीक के मामले में अव्वल है, उतना ही किसान भी है। हिमालय में उनके गांव में उन्होंने सेब के डेढ़ हजार पेड़ों का बगीचा विकसित किया है। इसके अलावा उन्होंने अखरोट, आडू, खुबानी के साथ ही हर्बल पौधे लगाये है। जितेंद्र बताते हैं कि हिमालय के निवासी होने के कारण हम सबकी जिम्मेदारी बनती है कि वो पर्यावरण से संबंधित भी कार्य करें। जितेंद्र बताते हैं कि वो अब तक डेढ़ हजार पेड़ लगा चुके हैं, जबकि लक्ष्य पांच हजार पेड़ों का तय किया है।