नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा विधेयकों को लंबे समय तक दबाए रखने और लंबी चुप्पी साधने पर सोमवार को सवाल उठाया। कोर्ट ने राज्यपाल की ओर से पक्ष रख रहे अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से कहा कि आप इतने लंबे समय तक चुप्पी क्यों साधे रहे, अगर आपको विधेयकों पर कोई आपत्ति थी तो राज्य सरकार को क्यों नहीं बताया? हो सकता है कि वह आपसे सहमत होती। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल दोबारा पारित बिलों को राष्ट्रपति को कैसे भेज सकते हैं? सोमवार को भी कोर्ट ने दोनों पक्षों से कई सवाल पूछे। सभी पक्षों की बहस पूरी होने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया। जस्टिस जेबी पार्डीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले पर सुनवाई की। तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर राज्यपाल आरएन रवि पर लंबे समय तक विधेयकों को दबाए रखने का आरोप लगाया है।
याचिका के मुताबिक कुछ विधेयक 2020 से लंबित हैं। तमिलनाडु सरकार के मुताबिक राज्यपाल ने 12 विधेयकों पर पहले लंबे समय तक मंजूरी नहीं दी और उन्हें रोके रखा। उसके बाद विधानसभा ने विशेष सत्र बुलाकर विधेयकों को दोबारा पारित किया। फिर राज्यपाल ने 10 विधेयक राष्ट्रपति को विचार के लिए भेज दिए।
राज्यपाल की ओर से अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने पक्ष रखा और संविधान में प्राप्त राज्यपाल की शक्तियों का जिक्र करते हुए राज्यपाल के विधेयकों पर मंजूरी रोके रखने और बाद में उन्हें राष्ट्रपति को भेजने को जायज ठहराया। उन्होंने कहा कि राज्यपाल को ऐसा करने का अधिकार है।
राज्य सरकार को क्यों नहीं बताई आपत्ति?
पीठ ने वेंकटरमणी से कई सवाल पूछे। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल ने जब विधेयकों पर मंजूरी रोकी तो ऐसा करने के पीछे निश्चित रूप से उनके मन में कुछ रहा होगा तब फिर उन्होंने सरकार को क्यों नहीं बताया कि उन्हें किस चीज पर आपत्ति है। वो एक-दो साल तक चुप्पी साधे रहे और मंजूरी रोके रहे। उसके बाद उन्होंने विधेयकों को राष्ट्रपति को भेज दिया। दोबारा पारित बिलों को वह राष्ट्रपति को कैसे भेज सकते हैं।
वेंकटरमणी ने कहा कि संविधान में इसकी मनाही नहीं है। राज्य सरकार को बताने पर अटार्नी जनरल ने कहा कि राज्यपाल ने पहले राज्य सरकार को बताया था कि उन्हें विधेयक में राज्य विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति के लिए चयन समिति के गठन को लेकर आपत्ति है। राज्यपाल जो कि राज्य में विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति होते हैं, चाहते थे कि उस समिति में यूजीसी चेयरमैन द्वारा नामित व्यक्ति शामिल किया जाए।
वेंकटरमणी ने कहा कि इसके बाद राज्य विधानसभा ने विधेयक पारित किया जिसमें राज्यपाल जो विश्वविद्यालय का पदेन कुलाधिपति होता है, उसे कुलपति की नियुक्ति प्रक्रिया से हटा दिया। इस पर पीठ ने कहा कि तब आप विधेयक पर चुप क्यों रहे अगर आपको विधेयक केंद्रीय कानून के विपरीत लग रहा था और आपत्ति थी तो राज्य सरकार को क्यों नहीं बताया।
विधानसभा को मालूम होना चाहिए कि उन्हें क्या आपत्ति है। राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी और अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल बताएं कि क्या कारण है जिसकी वजह से उन्होंने विधेयकों पर मंजूरी रोकी है। दोनों पक्षों की बहस पूरी होने पर पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया। कोर्ट कई कानूनी सवालों पर भी विचार करेगा जिसमें राज्यपाल के मंजूरी रोके रखने का विशेषाधिकार भी शामिल है।
दोबारा पारित बिलों को राष्ट्रपति को कैसे भेज सकते हैं’, सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु राज्यपाल की चुप्पी पर उठाया सवाल
Latest Articles
हवाई किराए में उतार-चढ़ाव के तनाव से मिलेगी मुक्ति, एलायंस एयर की नई योजना...
नई दिल्ली। विमानन मंत्रालय ने सोमवार को हवाई किराए से जुड़ी एक नई पहल शुरू की। सरकारी स्वामित्व वाली क्षेत्रीय विमानन कंपनी एलायंस एयर...
बिहार चुनाव: EC ने भरोसा बढ़ाने के लिए उठाया कदम, राजनीतिक दलों की मौजूदगी...
नई दिल्ली। चुनाव आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण से पहले उम्मीदवारों के बीच इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) की विश्वसनीयता बढ़ाने के...
‘आरक्षण से नहीं, योग्यता से न्यायिक सेवाओं में आ रहीं 60% महिलाएं’: सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि न्यायिक सेवाओं में शामिल होने वाली लगभग 60 फीसदी न्यायिक अधिकारी महिलाएं हैं। शीर्ष कोर्ट...
ईपीएफ से पैसा निकालना हुआ आसान, नियमों में बड़ा बदलाव
नई दिल्ली: कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ने सोमवार को कई बड़े फैसलों का एलान किया। ईपीएफओ के बोर्ड ने अपने सात करोड़ से अधिक...
सहकारिता ही सामाजिक एकता और आर्थिक स्वावलंबन की आधारशिलाः मुख्यमंत्री
देहरादून। मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम स्थल पर विभिन्न विभागों/समूहों/संस्थाओं द्वारा लगाए गए स्थानीय उत्पादों के स्टॉलों का निरीक्षण कर स्थानीय उत्पादों को प्रोत्साहन देने तथा...