1 जुलाई को हमारे देश में वस्तु एवं सेवा कर यानि GST को लागू किए पांच साल पूरे हो चुके हैं। याद हो, साल 2003 में अप्रत्यक्ष करों पर केलकर टास्क फोर्स की रिपोर्ट में पहली बार इस पर चर्चा की गई थी और इसे बनाने में काफी समय और मेहनत लगी था। आज उसी मेहनत का नतीजा है कि देश में पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार का जीएसटी फॉर्मूला सुपरहिट रहा।
एक राष्ट्र, एक कर- वस्तु एवं सेवा कर (GST)
जी हां, इसकी शुरुआत के बाद से, ही इसके रिजल्ट सामने आने लगे थे। हालांकि स्वाभाविक रूप से शुरुआती समय में समस्याओं का भी सामना करना पड़ा लेकिन, कोविड -19 वैश्विक महामारी और इसके नतीजों से अशांति का सामना करने के बाद भी भारत मजबूती से उभर कर सामने आया है। इसका पूरा श्रेय आज जीएसटी काउंसिल और उन केंद्र और राज्यों को जाता है जिन्होंने न केवल संकट का सामना करने के लिए बल्कि हमारी अर्थव्यवस्था को सुधार के रास्ते पर लाने के लिए एक-दूसरे का हाथ थामा। जीएसटी ने इन पांच साल में ऐसा करिश्मा कर दिखाया है कि पूरी दुनिया में भारत आज सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में खड़ा है जबकि विश्व का बड़े से बड़ा विकसित देश भी इस संकट की घड़ी से अब तक उभर नहीं पाया है। यही वजह है कि सारी दुनिया की निगाहे आज भारत पर टिकी हुई हैं।
GST परिषद का तंत्र केवल मात्र भारत के लिए ही रहा अद्वितीय
ऐसा नहीं है कि एक राष्ट्र, एक कर का ये सुपरहिट फॉर्मूला सिर्फ भारत ने अपनाया है। 2017 से पहले विश्व के कई अन्य देश और रहे हैं जिन्होंने इससे मिलती-जुलती कर प्रणाली को अपने यहां लागू किया है लेकिन बावजूद उसके उन राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था भी कोरोना संकट की मार सह नहीं पाई और पिछड़ कर रह गई। लेकिन इन सबके बीच जीएसटी परिषद का तंत्र केवल मात्र भारत के लिए ही अद्वितीय रहा है।
कई कानूनों को मिला कर लाया गया GST
दरअसल, भारतीय राजनीति की अर्ध-संघीय प्रकृति जिसमें केंद्र और राज्यों दोनों को कराधान की स्वतंत्र शक्तियां प्राप्त थीं, ने एक अद्वितीय समाधान की मांग की। इसके पश्चात विभिन्न राज्यों और विकास के विभिन्न चरणों में उनकी पहले से चली आ रही कर प्रणालियों को जीएसटी के तहत एक साथ लाया जाना था। बताना चाहेंगे कि राजस्व संग्रह के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग में राज्य भी विभिन्न चरणों में थे। जीएसटी परिषद, संवैधानिक निकाय, और भारत के लिए जीएसटी समाधान इसी मांग के जवाब थे। कुछ अपवादों को छोड़कर, केंद्र और राज्यों दोनों के करों को जीएसटी में समाहित कर दिया गया था। इसलिए इसे दोहरी जीएसटी भी कहा जाता है। केवल इतना ही नहीं सत्रह विभिन्न कानूनों को मिला दिया गया और जीएसटी के माध्यम से एक एकल कराधान प्रणाली लाई गई।
GST काउंसिल ने कर व्यवस्था से संबंधित प्रमुख मुद्दों के समाधान में निभाई अहम भूमिका
जीएसटी परिषद ने कर व्यवस्था से संबंधित प्रमुख मुद्दों जैसे दरों, छूट, व्यावसायिक प्रक्रियाओं और आईटीसी की आवाजाही इत्यादि पर राष्ट्रीय सहमति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जुलाई 2017 में 63.9 लाख से अधिक करदाता जीएसटी में चले गए। जून 2022 तक यह संख्या दोगुनी से अधिक यानि 1.38 करोड़ से अधिक हो गई है। 41.53 लाख से अधिक करदाता और 67,000 ट्रांसपोर्टर ई-वे पोर्टल पर नामांकित हुए हैं, जो प्रति माह औसतन 7.81 करोड़ ई-वे बिल जेनरेट करते हैं। इस प्रणाली के शुरू होने के बाद से, कुल 292 करोड़ ई-वे बिल जेनरेट हुए हैं, जिनमें से 42% माल के अंतरराज्यीय परिवहन के लिए हैं। इस साल 31 मई को एक दिन में सबसे ज्यादा 31,56,013 ई-वे बिल मिले।
रसद आपूर्ति श्रृंखला क्षमता कई गुना बढ़ी
औसत मासिक संग्रह 2020-21 में 1.04 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 2021-22 में 1.24 लाख करोड़ रुपए हो गया है। इस साल के पहले दो महीनों में एवरेज कलेक्शन 1.55 लाख करोड़ रुपए है। यह एक उचित और उचित अपेक्षा है कि यह निरंतर बढ़ती प्रवृत्ति जारी रहेगी। जीएसटी ने सीएसटी/वैट व्यवस्था के तहत राज्यों के बीच मौजूद कर मध्यस्थता को समाप्त कर दिया है। एक घुसपैठ नियंत्रण प्रणाली (इंट्रूसिव कंट्रोल सिस्टम), जिसमें सीमा जांच चौकियां शामिल थीं और माल से लदे ट्रकों का भौतिक सत्यापन शामिल था, में परिणामस्वरूप समय और ईंधन की काफी हानि होती थी। इसके चलते देश में अंदर कार्गो की आवाजाही के लिए रसद श्रृंखला कभी पैमाना और दक्षता हासिल नहीं कर सके। माल की लागत में लॉजिस्टिक लागत का 15 प्रतिशत तक योगदान करने का अनुमान लगाया गया था। IGST के तहत और ई-वे बिल के साथ ऐसी कोई मध्यस्थता नहीं होने से, रसद आपूर्ति श्रृंखला क्षमता कई गुना बढ़ गई है। मल्टी-मोडल ट्रांसपोर्ट पर हमारे ध्यान के साथ और अब पीएम गति शक्ति के साथ, इन लाभों का बढ़ना निश्चित है।