देहरादून: उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय पर जमकर पलटवार किया है. हरीश रावत ने किशोर उपाध्याय को जवाब देते हुए लिखा है कि मेरे एक अनन्य सहयोगी ने बहुत बार ये सार्वजनिक चर्चा छेड़ी है कि उन्हें सहसपुर से षडयंत्रपूर्वक लड़ाया गया, उनके न चाहते हुए लड़ाया गया और यह घटनाक्रम 2017 के विधानसभा चुनाव का है.
टिहरी जहां से वो लड़ते रहे हैं, उस सीट से कांग्रेस पार्टी ने अंतिम दम पर उनकी संस्तुति पर ही उम्मीदवार तय किया और लड़ाया. टिहरी के लोग बड़ी संख्या में आए भी, PCC में उपवास भी रखा और हमने पी.सी.सी. में जाकर के घोषणा की कि अब भी यदि वो मानते हैं तो हमें बड़ी खुशी होगी कि वो टिहरी से लड़ें, क्योंकि पार्टी उनको टिहरी के नेता के रूप में आज भी देखती है, पहले भी देखती रही है. निर्णय हमारे साथी का था, जब वो 2017 का चुनाव ऋषिकेश से लड़ना चाहते थे, सबने उनके इस संकेत का भी स्वागत किया. फिर डोईवाला, रायवाला का भी उन्होंने आकलन किया.
स्क्रीनिंग कमेटी में सारे सदस्यों के सामने उन्होंने अपने परिवार के लोगों से पूछा कि मुझे कहां से लड़ना चाहिये और जब उधर से सुझाव आया कि सहसपुर से आप लड़िये तो उनके कहने के बाद ही स्क्रीनिंग कमेटी ने सहसपुर से उनका नाम फाइनल किया. अब यह षड्यंत्र न जाने कितना बड़ा हो गया है! ऐसा लगता है कि 2016-17 में हम और कुछ नहीं कर रहे थे, केवल उनके खिलाफ षड्यंत्र ही कर रहे थे. जब हम आगे बढ़ते हैं, तो उसमें बहुत सारे लोगों का हाथ होता है, सहयोग होता है, उन सबको षड्यंत्री समझ लेना कहां तक न्याय संगत है, इस पर लोग जरूर विचार करेंगे और मुझे दु:ख है कि बार-बार यह कहने से नुकसान हम ही को हो रहा है “कद्दू, छूरी में गिरे या छूरी, कद्दू में गिरे” नुकसान हमारा अपना ही है। मगर राजनीति के अंदर यदि आप मीठा सुन सकते हैं तो कभी-कभी कड़वा भी सुनना पड़ता है. देखते हैं, कहां तक संयम साथ देता है.
आपको बता दें कि किशोर उपाध्याय ने हरीश रावत को बीते 18 नवंबर को पत्र लिखते हुए कहा था कि मुझे अभी सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी मिली है कि आप कल 19 नवम्बर को सहसपुर विधान सभा के सेलाकुई क़स्बे में पदयात्रा का नेतृत्व कर रहे हैं, जिसकी मुझे कोई जानकारी नहीं है. आप तो जानते ही हैं 2017 में मैं विधान सभा का चुनाव नहीं लड़ना चाहता था।आपके आदेश और एक विशेष तर्क पर मैंने CEC के फ़ैसले पर चुनाव लड़ने के लिये हामी भरी, जब मैंने यह तर्क दिया कि जो वहाँ से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं और 2012 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़े हैं, यह उनके साथ अन्याय होगा तो केंद्रीय नेतृत्व ने मुझे विश्वास दिया कि उनको सहमत करने की ज़िम्मेदारी उनकी है.
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ना बड़ी हिम्मत का काम है और चुनाव लड़ने के बाद ससम्मान कांग्रेस में वापसी के साथ बड़े-बड़े पदों पर विराजमान कर देना, सम्भवत: कांग्रेस की और भी इज़्ज़त बढ़ाने वाला काम है. पूर्व अध्यक्ष व गत विधान सभा चुनाव के उम्मीदवार को किस तरह इज्जत बक्शी जाती है, इस होर्डिंग से परिलक्षित होती है. 2022 का रण अगर हम इस तरह की मानसिकता से जीत रहे हैं तो मुझे अपना अपमान भी सहर्ष मंज़ूर है.
उत्तराखंड राज्य आंदोलन के बाद की कांग्रेस की हालत यह थी कि कांग्रेस का एक भी विधायक अन्तरिम विधान सभा में न था. आपने कांग्रेस को पुन: स्थापित किया, लेकिन मेरा भी उसमें कोई कम योगदान नहीं है. 2012 का चुनाव मुझे जनता ने नहीं हराया, कांग्रेस के बड़े नेता ने षड्यन्त्र से हरवाया और अब मुझे लगता है, 2017 में भी मैं एक बड़े षड्यन्त्र का शिकार हो गया।आशा है, आप मेरी भावना को समझेंगे.