संकल्प की डोर
व्यक्ति के जीवन में कुछ तिथियां व समय अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं, जिसको वो भूलना नहीं चाहता है. कुछ ऐसे घटनाक्रम समय विशेष में घटित होते हैं, जिसका व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है. मेरे जीवन में ऐसे बहुत सारे क्षण और तिथियां आयी, जिन्होंने मेरी जीवनधारा को गहराई से प्रभावित कर दिशा देने और नियंत्रित करने का काम किया. मैं दो ऐसी तिथियों में घटित घटना और उसका मेरे जीवन में पड़े प्रभाव को आपके साथ साझा करना चाहता हॅू.
मैंने मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड के रूप में 1 फरवरी, 2014, शनिवार के दिन सायं 6 बजे के बाद शपथ ली. पंडित जी द्वारा शपथ हेतु निर्धारित समय में, मैं शपथ नहीं ले पाया. दिन भर राजनैतिक घटनाक्रम ऐसा उलझा कि सायंकाल ही शपथ हो पाई. मुख्यमंत्री के रूप में जीवन का क्रम बहुत व्यवस्थित ढंग से चल रहा था. चुनौतियों का मुझे अनुमान था और मैं उनका अपने तरीके से निष्पादन भी कर रहा था. दिनांक- 6 फरवरी, 2014 को हमने वार्षिक बजट प्रस्तुत किया. हमारा बजट अपने आप में, एक आपदाग्रस्त राज्य के लिये स्फूर्ति पैदा करने वाला बजट था. मैं आपदा के बाद सब चीजों को ढर्रे पर आता देखकर बहुत खुश था. भगवान केदारनाथ जी की नगरी और चारधाम यात्रा मार्गों में चल रहे निर्माण कार्यों और यात्रा को गति पकड़ते देखकर हम सब बहुत खुश थे. राज्य की व्यवस्था विशेषतः अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही थी. सीतापुरी से लेकर केदारपुरी तक मैंने एक रोडमैप केदारनाथ यात्रा का बनाया था, उस पर भी व्यवस्थित ढंग से अमल हो रहा था. यह सब भगवान केदार की कृपा से सम्भव हो रहा था. इसी दौरान मुझको विधानसभा का चुनाव लड़ना भी आवश्यक था. मैं वस्तुतः डोईवाला से चुनाव लड़ना चाहता था और सोमेश्वर के लिये भी हम उम्मीदवार का चयन कर चुके थे. धारचूला के विधायक हरीश धामी जी ने गैरसैंण में हुये विधानसभा सत्र के दौरान विधानसभा में अपनी विधानसभा सदस्यता से त्यागपत्र की घोषणा कर दी और स्पीकर महोदय ने उसको स्वीकार कर लिया. जब मुझे जानकारी मिली, मैं हड़बड़ाहट में विधानसभा पहुंचा, तब तक मेरे साथियों ने आपसी परामर्श से सब तय कर लिया था. मेरे सामने धारचूला से चुनाव लड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह गया था.
13 जून, 2014 को अपराहन में मैं चुनाव आयोग से भेंट करने के लिये दिल्ली को रवाना हुआ. मुख्य चुनाव आयुक्त महोदय ने मुझे साढ़े चार बजे का समय मिलने को दिया. मैं देहरादून से, स्टेट प्लेन से चार सहयोगियों के साथ जौलीग्रान्ट से रवाना हुआ, बहुत आनन्दायक तरीके से यात्रा आगे बढ़ रही थी. अचानक बहुत काले-काले घने बादलों के प्रबल बेग वाले झुंड ने हमारे छोटे जहाज को घेर लिया और जहाज ऊपर-नीचे हिचकोले खाने लगा, बहुत कठिनत्तर स्थिति में एक साथ कई-कई फीट नीचे गिरना और फिर आगे बढ़ना, लगभग चार मिनट ऐसे हालात रहे. मेरे साथियों में से दो लोग अपनी सीट से नीचे फर्श पर गिर गये. पायलटों के चेहरे पर भी घबराहट दिखाई दे रही थी और अचानक एक बड़ा झटका लगा और उस झटके में मेरा सर कुछ इंच उछल करके जहाज के हार्ड टाॅप पर टकराया और मुझे झटके के साथ बड़ी पीड़ा हुई. खैर उस समय जिन्दगी खतरे में दिखाई दे रही थी, पीड़ा का एहसास तो था लेकिन जिन्दगी संघर्ष कर रही थी. मेरा सारा ध्यान हवाई जहाज के डमा डोल होने पर केन्द्रित था. चार-साढ़े चार मिनट बाद हवाई जहाज खतरे से बाहर निकला तो मुझे अपनी गर्दन में कुछ अनहोनी का एहसास हुआ. क्योंकि सर में बड़ा गुमड़ निकल आया था. हम दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचे और दिल्ली से मैंने सीधे मुख्य चुनाव आयुक्त के पास पहुंचने का निर्णय लिया. मेरे सहयोगियों ने सब चीजें तैयार करके रखी हुई थी, पत्र भी तैयार था. जिस समय मैं मुख्य चुनाव आयुक्त महोदय के सम्मुख पहुंचा उस समय तक मेरी पीड़ा बहुत बढ़ गई थी, चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी. मुख्य चुनाव आयुक्त महोदय ने मेरे हालात को देखकर मुझसे पानी पीने को कहा. मैंने मेरे साथ घटित हादसे को उनके साथ साझा किया. उन्होंने मुझे अविलंब एम्स जाने की सलाह/आदेश दिया. हम सीधे एम्स पहुंचे. वहां उत्तराखण्ड कैडर के आई.ए.एस. अधिकारी डाॅ. राकेश कुमार संयुक्त सचिव स्वास्थ्य, भारत सरकार वहां पहुंच गये थे. वरिष्ठ डाॅक्टर्स की एक बड़ी टीम जिसमें दो-तीन विभागाध्यक्ष डाॅ. शर्मा व डाॅ. कोतवाल थे, मेरा इंतजार कर रह रहे थे. मेरे सहयोगी एस.डी. शर्मा टेलीफोन पर सब व्यवस्था करवा चुके थे. मेरे लिये व्हील चियर भेजी गई थी, लेकिन मैंने पैदल चलना ही तय किया. उस समय तक मुझे यह एहसास नहीं था कि मैं कितने बड़े खतरे में आ गया हूँ. डाॅक्टर्स ने सामान्य चेंकिग के बाद मेरा एक्सरा किया. एक्सरे में गुमड़ इत्यादि तो साफ दिखाई दे रहा था. मगर सी-1 और सी-2 में कोई गम्भीर चोट है इसका आकलन नहीं हो पाया. एक जूनियर डाॅक्टर ने वरिष्ठ डाॅक्टरों से कहा सर, मुझे कुछ असामान्य (एक्साऑर्डिनरी) दिखाई दे रहा है. मुझे लग रहा है कि बाल से पतली रेखा सी-1 और सी-2 में बनी हुई है, जिसे गौर से देखने के बाद सबने उसको स्वीकार किया और मुझे एम.आर.आई. के लिये ले जाया गया. एम.आर.आई. में स्थिति स्पष्ट हो गई. सबके चेहरों पर घबराहट थी, फौरी तौर पर मुझको गर्दन में पट्टा पहना कर भर्ती कर दिया गया. एक के बाद एक जाचें होने लगी, यह सब कारवाई रात 9 बजे तक चलती रही. मुझसे डाॅक्टर ए.के. शर्मा जी जिनके अन्डर मेरा उपचार चला, उन्होंने पूछा कि आप यहां एम्स में उपचार कराना चाहेंगे या बेहतर चिकित्सा हेतु यू.एस. जाना चाहेंगे. दूसरा सवाल मुझसे पूछा गया कि क्या आपके लिये गर्दन में पट्टा पहनकर 12 महिने तक एक निश्चित प्रोटोकाॅल के तहत रहना सम्भव होगा या ऑपरेशन करवाना चाहते हैं? मैंने उनसे कहां यदि ऑपरेशन करेंगे तो कितना समय मैं ठीक हो सकता हॅू! उन्होंने कहा आपको रिकवर करने में 8 से 9 महिने लगेंगे. मैंने पूछा सम्भावनाएं क्या है ठीक होने की! उन्होंने कहा दोनों में ये सम्भावनाएं 40 प्रतिशत के आस-पास हैं. आप भाग्यशाली होंगे तो पूर्णतः रिकवर जायेंगे. इसमें आपका सहयोग कितना है उस पर बहुत कुछ निर्भर करेगा. यह सहयोग शब्द मेरे लिये एक चेतावनी भी थी. मैंने उनसे कहा कि मैं सुबह तक आपको दोनों बिन्दुओं पर निर्णय करके बताता हॅू. मैंने भगवान से प्रार्थना कि और कहा हे भगवन मेरे जीवन में क्या है, आप निर्धारित करिये. सुबह न जाने क्यों मेरे मन में यह आया कि मैं अपना उपचार एम्स में ही करवाऊंगा. क्योंकि दोनों स्थितियों में ठीक होने की संभावनाएं बराबर थी. मैंने सोचा यू.एस. जाकर के पूरे परिवार को तकलीफ में डालूं और राज्य का पैसा खर्च करवाऊं, उसके बजाय मुझे एम्स में ही अपनी चिकित्सा करवानी चाहिये. मैं राज्य के निकट भी रहना चाहता था.
पहली रात और दूसरा दिन बहुत तनाव में गुजरा. पेनकिलर की हैवी डोज के बावजूद गर्दन व सर में दर्द हो रहा था. मैंने अपने कष्ट को कम करने व ध्यान बटाने के लिये अपने जीवन की कुछ पुरानी रिकाॅडिंग को सुनना प्रारम्भ किया. एक अवसाद मुझे घेर रहा था, उस अवसाद से मुझे झुटकारा मिल सके, इस हेतु ध्यान को दर्द व दुर्घटना से बांटना आवश्यक था. मैं डाॅक्टर्स की बातचीत सुन चुका था, उसके बाद अवसाद एक सामान्य प्रकिया थी. एक बार मैं अवसाद में चला जाता तो फिर उभरना कठिनत्तर हो जाता. मुख्यमंत्री के रूप में काम करना बहुत कठिन हो जाता. मुझे लगी चोट और गहरी न हो, ठीक हो और उसके साथ-2 मैं अवसाद में न जाऊं, उससे बचने का प्रयास भी मुझे करना था. एक दोहरा संकट मेरे सामने था. खैर मिलने वालों की लम्बी कतारें लग गई, देश के बड़े-2 राजनेतागण भी आये. श्रीमती सोनिया गांधी जी, श्रीमती अम्बिका सोनी जी के साथ आई. उन्होंने मेरे गर्दन पर हाथ रखकर के कहा कि हरीश हिम्मत करो. मुझे उनके शब्दों ने बहुत प्रेरणा दी, लेकिन मैंने उनसे एक निवेदन किया कि मैडम, मैं शायद कई महिने ऐसी स्थिति में रह सकता हॅू. आप इजाजत दें तो किसी को मुख्यमंत्री का चार्ज दे देते हैं ताकि राज्य का काम रूके नहीं. उन्होंने कहा जल्दी में कोई निर्णय मत करो. यह अलग बात है कि मैंने अपने विश्वास के भरोसे डाॅ. इंदिरा हृदयेश जी को काम चलाने के लिये पत्र दिया ताकि जहां मुख्यमंत्री को अध्यक्षता करनी है, वो काम रूकें नहीं.
मेरे मिलने वालों से पूरी मेडिकल टीम बहुत परेशान रहते थी. चाहे मैं यूं ही लेटा रहता था, मगर हर मिलने वाले से मुझे ताकत/शक्ति मिलती थी, जीने की ईच्छा और प्रबल होती थी. किसी तरीके से मैंने अपने को अवसाद से बचाते हुये एक व्यवस्थित मरीज के तौर पर आचरण प्रारम्भ किया, जिसमें खाने व सोने की टाइमिंग से लेकर के सब चीजें सम्मिलित थी. मुझे टट्टी-पेशाब सारी क्रियाएं जिस बेड में लेटा हुआ था, उसी अवस्था में करवानी पड़ती थी. गर्दन का काॅलर बोन निरंतर बधा रहता था. सर पर जरा-जरा पानी लगाकर के तौलिये से यूं ही स्पंज बाथ करके और मुंह में हल्का कुल्ला करके काम चलाता था. लेकिन नीचे के हिस्से को कभी-2 हल्के-हल्के से, मैं जरूर धुलवाता था. क्योंकि बिना नहाने का आभास हुये मैं पूजा नहीं कर सकता था और जब तक मैं पूजा नहीं करता था, खाना नहीं खाता था. मैं एक अजीब सी दुविधा में था. भगवन से बार-2 क्षमा चाहते हुये हल्की-2 पूजा-पाठ, लेटे-2 कर लेता था. मुझे लगता था कि भगवान ने मुझे क्षमा कर दिया है और कहा कि अपनी जिन्दगी को देखो. एम्स में भर्ती के दौरान ही मुझे धारचूला से विधानसभा चुनाव हेतु नामांकन भी करना था, वो भी मैंने एम्स के चिकित्सा बेड से ही अपना नामांकन पत्र भरा. मुझे एक बात की बेहद खुशी है कि भगवान ने न जाने कहां से मुझे प्रेरणा दी कि जिस दिन मैं एडमिट हुआ था उसके दूसरे दिन से ही आवश्यक सरकारी फाइलों को निपटाना प्रारम्भ किया. भले ही मैं फाईलों में हस्ताक्षर करता था बड़े सहारे से करता था, वो भी बहुत स्पष्ट तौर पर नहीं हो पाते थे. लेकिन मैंने राज्य के विकास से संबन्धित आवश्यक फाइलों को रूकने नहीं दिया. बेड में लेटे-2 अधिकारियों से सलाह लेना व उन्हें परामर्श देना भी प्रारम्भ कर दिया. इस प्रक्रिया व मिलने-जुलने में इतना थक जाता था कि मुझे रात होते ही नींद आ जाती थी. अवसाद को मुझे घेरने का वक्त ही नहीं मिलता था. पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के Facebook वाल से