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Wednesday, December 3, 2025


‘विदेशी होने के शक में बांग्लादेश लौटाए लोगों को वापस लाकर सुनवाई का मौका दें’; अदालत का सुझाव

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सुझाव दिया कि पश्चिम बंगाल के जिन निवासियों को विदेशी होने के शक में बांग्लादेश भेज दिया गया, उन्हें अस्थायी रूप से वापस बुलाकर सुनवाई का मौका दिया जाए। अदालत ने कहा कि जन्म प्रमाण पत्र, भूमि अभिलेख जैसे दस्तावेज साक्ष्य माने जा सकते हैं। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने केंद्र सरकार के वकील से कहा कि निर्वासित व्यक्तियों की ओर से प्रस्तुत किए गए जन्म प्रमाण पत्र, पारिवारिक भूमि अभिलेख आदि दस्तावेज साक्ष्य के रूप में विचारणीय हैं। ऐसे में सरकार उन्हें वापस बुलाकर उनके दस्तावेज की सत्यता की जांच कर सकती है।
सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता भोदू शेख के वकील संजय हेगड़े ने कोर्ट को बताया कि केंद्र ने लगभग एक महीने बाद कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले (निर्वासित किए गए लोगों को वापस लाने के निर्देश) को चुनौती दी है। यह मामला डिफेक्ट (आवेदन में कुछ कमी रह जाना) श्रेणी में ही पड़ा रहा। जब प्रतिपक्ष ने अवमानना का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट का रुख किया, तब केंद्र सरकार ने मामले को आगे बढ़ाया। उन्होंने कहा कि जिन्हें सीमा पार फेंक दिया गया है, वह भारतीय नागरिक हैं।
याचिकाकर्ता के वकील की दलीलें सुनने और रिकॉर्ड को देखने के बाद सीजेआई ने केंद्र सरकार के वकील से कहा, बहुत सारी सामग्री रिकॉर्ड पर आ रही है। यह एक तरह से संभावना का सबूत हैं। आपको क्या रोक रहा है? पहले शायद पर्याप्त जांच नहीं हुई। यह भी आरोप है कि निर्वासितों को सुने बिना ही उन्हें बाहर भेज दिया गया। आप, अस्थायी तौर पर उन्हें वापस क्यों नहीं लाते? उन्हें सुनवाई का मौका क्यों नहीं देते? जो दस्तावेज और तथ्य पेश किए गए हैं, उनका सत्यापन क्यों नहीं कराते।मामले को समग्रता से क्यों नहीं देखते।
पीठ ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति वास्तव में बांग्लादेश से अवैध रूप से देश में प्रवेश करता है तो उसे वापस भेजना पूरी तरह उचित है। लेकिन यदि कोई यह कहने में सक्षम है कि वह भारत में जन्मा और पला बढ़ा है तथा भारतीय नागरिक है और उसके पास इसके समर्थन में दिखाने के लिए दस्तावेज हैं तो उसे अपना पक्ष रखने का अधिकार मिलता है। पीठ ने निर्देश लेने के लिए सोमवार तक का समय देते हुए संकेत दिया कि केंद्र सरकार अंतरिम उपाय के तौर पर निर्वासित किए गए लोगों को वापस ला सकती है और जांच एजेंसियों से उनके दस्तावेज की सत्यता की जांच करवा सकती है।
यह मामला कलकत्ता हाईकोर्ट के सितंबर के आदेश से उपजा और शीर्ष अदालत पहुंचा है। हाईकोर्ट ने कहा था कि निर्वासितों की नागरिकता का विषय विस्तार से जांच का विषय है और उन्हें चार सप्ताह के भीतर वापस लाया जाए। बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने लोगों के निर्वासन के लिए अपनाए गए तरीके पर सवाल उठाया था। हाईकोर्ट ने माना कि नागरिकता के सवाल पर अदालत के सामने आगे के दस्तावेज और सबूतों के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ता भोदू शेख ने अपनी बेटी, दामाद और पोते की अवैध हिरासत व निर्वासन का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। शेख ने कहा था कि परिवार पश्चिम बंगाल का स्थायी निवासी है और बेटी दामाद भारतीय नागरिक हैं जो रोजगार के लिए दिल्ली गए थे। दिल्ली में पहचान जांच अभियान के दौरान उन्हें हिरासत में लिया गया और 26 जून 2025 को निर्वासित कर दिया गया जबकि उसकी बेटी गर्भवती थी।
अधिकारियों ने दावा किया कि हिरासत में लिए गए लोगों ने पुलिस के समक्ष बांग्लादेश का नागरिक होने की की बात मानी थी। वह अपना आधार कार्ड, राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र या कोई अन्य दस्तावेज नहीं दिखा पाए थे, जिससे उनके भारतीय नागरिक होने की बात साबित होती हो। हाईकोर्ट ने कहा था कि भले ही हिरासत में लिए गए लोगों ने दिल्ली पुलिस के सामने बांग्लादेश के नागरिक होने की बात मान ली हो। कानून यह मानता है कि पुलिस अधिकारी को दिया गया बयान दबाव से लिया गया होगा। इसके बाद उन्हें चार हफ्ते में वापस लाने का निर्देश दिया था।

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