नई दिल्ली। एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक मात्रा में इस्तेमाल करने का असर दिखना शुरू हो गया है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अध्ययन में चिंताजनक तस्वीर सामने आई है। अध्ययन में कहा गया है कि भारत में रोगाणु एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति लगातार प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर रहे हैं। ये दवाएं इन रोगाणुओं को खत्म करने में सक्षम नहीं रहीं। इससे संक्रमण का इलाज कठिन हो सकता है और रोग के प्रसार, एवं मृत्यु का खतरा बढ़ सकता है।
आईसीएमआर के अध्ययन में पाया गया है कि खून के संक्रमण या ब्लडस्ट्रीम इंफेक्शन (बीएसआई) के लिए जिम्मेदार दो प्रमुख रोगाणु क्लेबसिएला निमोनिया और एसिनेटोबैक्टर बाउमानी आइसीयू के मरीजों में एंटीबायोटिक इमिपेनेम के प्रति प्रतिरोधी पाए गए हैं। अस्पताल में होने वाला यह सबसे आम संक्रमण है।
इसके अलावा दो अन्य रोगाणु स्टैफिलोकोकस आरियस और एंटरोकोकस फेसियम क्रमश: एंटीबायोटिक दवाओं आक्सासिलिन और वैनकोमाइसिन के प्रति प्रतिरोधी पाए गए हैं। आईसीएमआर की वार्षिक रिपोर्ट 2023 के अनुसार बैक्टीरिया एसिनेटोबैक्टर निमोनिया के लिए जिम्मेदार रोगाणु है।
इस रिपोर्ट में भारत के 39 अस्पतालों से जनवरी 2023 से दिसंबर 2023 तक सामने आए बीएसआई, पेशाब की नली के संक्रमण (यूटीआई) और निमोनिया के उन मामलों के बारे में विस्तार से बताया गया है जिनमें मराजों के वेंटिलेटर की जरूरत पड़ी। एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस (एएमआर) अध्ययन का नेतृत्व करने वाली आईसीएमआर की वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. कामिनी वालिया ने कहा कि इस रिपोर्ट में शामिल अस्पताल आईसीएमआर के एएमआर नेटवर्क का हिस्सा हैं।
डॉ. वालिया ने बताया कि यूटीआई के लिए जिम्मेदार रोगाणु ई. कोलाई और क्लेबसिएला निमोनिया व एसिनेटोबैक्टर बाउमानी में एंटीबायोटिक कार्बापेनम, फ्लोरोक्विनोलोन तथा सेफलोस्पोरिन के प्रति प्रतिरोध की उच्च दर देखी गई। पाइपेरासिलिन-टाजोबैक्टम और कार्बापेनम जैसे एंटीबायोटिक पिछले सात वर्षों में बाह्य रोगी विभाग (ओपीडी), गहन चिकित्सा इकाई (आइसीयू) और वार्ड के मरीजों में अधिक प्रतिरोधी पाए गए हैं। इन एंटीबायोटिक का उपयोग ई कोलाई बैक्टीरिया के कारण होने वाले रक्त संक्रमण के इलाज के लिए किया जाता है। डॉ. वालिया ने बताया कि वर्ष 2023 में एसिनेटोबैक्टर बाउमानी में कार्बापेनम के प्रति प्रतिरोध 88 प्रतिशत दर्ज किया गया।