भले ही डॉ रमेश पोखरियाल निशंक के अस्वस्थता के चलते शिक्षा मंत्रालय से त्यागपत्र दे दिया हो परंतु नई. राष्ट्रीय शिक्षा नीति में उनके शानदार योगदान को अवश्य याद रखा जाएगा. शिक्षा क्षेत्र से जुड़े सभी हितधारकों से संवाद के महत्व को समझते हुए उन्होंने देशभर के शिक्षा मंत्रियों, राज्यपालों, शिक्षा सचिवों, कुलपतियों के साथ सार्थक संवाद किया। ढाई लाख ग्राम पंचायतों तक पहुंचकर सब की राय लेने का प्रयास हुआ। डॉ निशंक ने नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट को विभिन्न भाषाओं में अनुवादित कर जनप्रतिनिधियों से भी व्यापक बैठक की. सांसदों, प्रदेश के मुख्यमंत्रियों से मुलाकात के अलावा कई कार्यशालाएँ आयोजित की गई विश्वविद्यालयों के कुलपति से लेकर स्कूलों तक पहुंचने का सफल अभियान चलाया गया जिसका परिणाम यह निकला कि नई शिक्षा नीति का देश और विदेशों में व्यापक स्वागत हुआ है.
देखा जाए तो स्वाधीन भारत के इतिहास में प्रथम बार ऐसी शिक्षा नीति बनी है. जो भारत केंद्रित है और भारत को ज्ञान आधारित महाशक्ति बनाने का संकल्प परिलक्षित करती है. हावर्ड, कैंब्रिज और मिशीगन जैसे विश्व के श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों ने इस नीति की सराहना की है. शोध परक व्यवहारिक और नवाचार युक्त होने के कारण विदेशी विद्वानों ने भी इस नई शिक्षा नीति की भूरि भूरि प्रशंसा की है. विदेश की 100 शीर्ष संस्थाओं ने नई शिक्षा नीति के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण कर उसकी सराहना की है. यह नई शिक्षा नीति वस्तुतः नव भारत के निर्माण की सशक्त आधारशिला है.
विश्व गुरु भारत का निर्माण इसी नीति से होगा. अध्यापकों को विद्यार्थियों की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए शिक्षा नीति उनके कल्याण बेहतर प्रशिक्षण के लिए प्रतिबद्ध है. डॉ निशंक ने पूरे कार्यकाल में सभी हितधारकों के साथ लगातार संवाद रखा. कोराना के कठिन काल में विद्यार्थियों ने इसका व्यापक स्वागत किया. अस्पताल से बच्चों को संबोधित करना विद्यार्थियों के प्रति उनके प्यार का परिचायक है. विद्यार्थियों की समस्याओं के प्रति संवेदनशील मंत्री के रूप में शिक्षा जगत उन्हें याद रखेगा.