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Monday, December 23, 2024

ऊर्जा पुरुष रतन सिंह गुनसोला: जिन्होंने पहाड़ को दिखाई रोशनी

टिहरी: किसी भी जिले का जिला पंचायत अध्यक्ष होना बहुत बड़ी बात नहीं है। सबसे बड़ी बात है नेता का विजन ! पहाड़ के प्रति एक सकारात्मक विजन। जो रतन सिंह गुनसोला के पास था।जिन्होंने अपने दम पर 3 मेगावाट की छोटी बिजली परियोजना बनाई। आज उनका देहांत हो गया है वैसे तो उन्होंने 87 बरस की अपनी बेहतरीन जीवन की पारी खेली। लेकिन यदि वह रहते तो एक विजनरी व्यक्ति राज्य में है की उपस्थिति है।बस यही था।

जनवरी 1936 माह में मेराब गांव (गडोलिया) पट्टी खास , टिहरी गढ़वाल में पैदा हुए रतन सिंह गुनसोला पांच भाई एक बहन में थे। 1936 में टिहरी स्टेट हुआ करता था। आजादी के 15-16 साल साल बाद विकास खंडों का गठन हुआ, तो गुनसोला जी का विकासखंड है जाखणीधार। 1959 में उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग का डिप्लोमा ले लिया। 59 से 61 तक वह वन विभाग, लोक निर्माण विभाग, जिला पंचायत में अंशकालिक रूप से सर्विस में रहे। 1961 में वह उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग में पक्के ओवरसियर बन गए थे।

1973 में वह मोतीलाल नेहरू इंजीनियरिंग कालेज, इलाहाबाद के अन्तर्गत डिग्री कोर्स के लिए शिक्षा ग्रहण करने चले गये थे। जहाँ उन्होंने डिग्री एवं गंगा-यमुना नदियों के स्पेशलाइजेशन जल विकास विशेषज्ञ की शिक्षा ली। 1977 में मोतीलाल नेहरू इंजीनियरिंग कालेज, इलाहाबाद से सिविल इंजीनियर इन्डस्ट्रीयल ओरियन्टेड डिग्री कोर्स किया। प्रथम स्थान प्राप्त किया।

1961 -77 तक उन्होंने कई सिंचाई विभाग की परियोजना में काम किया। यही कारण था उन्हें छोटे बांध बनाने के कार्य में पहले से रुचि रही। उन्होंने मनेरी प्रथम,किसाऊ, सहित कई योजनाओं पर काम किया।उन्होंने सहायक अभियंता के रूप में लंबे समय तक कार्य किया। उन्होंने 1993 में बीआरएस ले लिया। और बीजेपी ज्वाइन कर ली।

1996 में उन्होंने जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा और जिला पंचायत अध्यक्ष बीजेपी के प्रत्याशी घोषित हो गए। संपूर्ण विपक्ष ने उनके खिलाफ प्रत्याशी उतारा जिसमें श्री दिवाकर भट्ट और श्री बलवीर सिंह नेगी सहित अनेक बड़े नेता शामिल थे, लेकिन गुनसोला ने नेगी को हरा दिया। 1996 में जिला पंचायत अध्यक्ष बनते ही उन्होंने कमीशनखोरी बंद कर दी थी और लीक से हटकर काम करने लगे। क्योंकि यह पहला अध्यक्ष था जिसने ठेकों पर संपूर्ण कमीशन की पाबंदी लगा दी। अपने लिए एक एंबेसडर गाड़ी, और नई टिहरी में एक अध्यक्ष के आवास से वह ही खुश थे। वह 2008 में पुनः जिला पंचायत अध्यक्ष बन गए। लोगों ने उन्हें फिर याद किया।

गुनसोला बड़े बांधों के खिलाफ थे वह छोटे छोटे बांधों को बनाने की हिमायत करते थे। हालांकि उन्होंने अपनी नौकरी के शुरुआत में 1963 में टिहरी डैम 195 करोड़ का बन जायेगा, यह आंकलन किया था। और यह योजना आयोग को रिपोर्ट प्रेषित है। योजना आयोग की स्वीकृति के बाद उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग ने ही सर्वप्रथम टिहरी बांध की सुरंगों की खुदाई का काम शुरू कर दिया था।

छोटी छोटी परियोजना की सबसे पहले शुरुआत उन्होंने ही भिलंगना टिहरी से की , जब 15 साल पहले भिलंगना ब्लॉक में अपनी स्वयं की परियोजना की नींव डाल कर अपने राज्य की सरकारी उत्तराखंड जल विद्युत परियोजना निगम को ललकार रहे थे। उनका कई बार सम्मेलनों में कहना था कि जल विद्युत निगम छोटी-छोटी परियोजनाएं बनकर इस प्रदेश को हम ऊर्जा प्रदेश बना सकते हैं। उन्होंने कई सम्मेलन कराये, कई कार्यशाला आयोजित की गई, विशेषज्ञों के सामने यह बात रखी, लेकिन बड़े हुक्मरानों ने उनकी नहीं सुनी। जल विद्युत निगम का आज तक वही रवैया कायम है। उसको सिंचाई विभाग से जो परियोजनाएं विरासत में मिली है उसी से काम चला रहा है। मनेरी दो को छोड़कर। इसी साल शुरुआत में चमोली आपदा में एनटीपीसी का डैम बह गया। यू जे वी एन एल को 5- 10 साल का बहाना मिल गया ! इधर बिजली के रेट बढ़ रहे हैं। ऊर्जा प्रदेश को सस्ती बिजली भी दी जा सकती थी।

गुनसोला जी मनसा रखते थे कि, दूसरे प्रदेशों के लोग हमारे यहां बिजली पर निर्भर हो। क्योंकि यहाँ उन्होंने 5- 5 , 8- 8, 10-10 मेगावाट की छोटी-छोटी परियोजनाओं की संभावनाएं तलासी थी। इस तरह का प्रारूप करीब 50 हज़ार मेगावाट के छोटे डैम हर समय अपने बैग में रखते थे। उनके पास नदियों और खाल- गड़ियारों का बेहतर ज्ञान था. क्योंकि वह 1961 से पूरे पहाड़ की छोटी बड़ी नदियों के बहते पानी से वास्ता रखते थे। पहाड़ का पानी पहाड़ के काम आये। इस पर चल रहे थे।

छोटा बांध बनाने के लिए गुनसोला जी ने अपना मसूरी का अभिनंदन होटल और देहरादून और विकासनगर के बीच एक बड़ा फार्म हाउस बेचकर पहाड़ में बिजली बनाने के लिये निकल पड़े। गुनसोला जी यह तब कर रहे थे जब पहाड़ से पलायन हो रहा था, वह सब कुछ दून जिले में बेच कर पहाड़ जा रहे थे। यह कार्य उनका बहुत बड़ा रिस्क भी था। जमी जमाई चीजों को बेच कर वह एक नए उधोग की तरफ रुख कर रहे थे। कुछ लोग उन्हें हल्के में ले रहे थे। लेकिन यह इनका आत्मविश्वास पक्का ही था,जो बांध आज सफल हो गया। उन्होंने बांध बनाने के लिए बैंक से कर्जा भी लिया। वह आज इस छोटे बांध की बिजली से 80 लाख रुपए प्रतिमाह कमा रहे थे। स्टाफ़ के नाम पर दो तीन लोग। बिजली तारों में जा रही है। खरीददार बहुत हैं। भिलंगना में उनकी बराबरी हैदराबाद के कुछ लोग कर रहे थे। जिन्होंने भी अन्य परियोजना बनाई।

वह दो बार जिला पंचायत अध्यक्ष होने के बाद भी राजनीतिक व्यक्ति नहीं थे। यदि उनमें राजनीतिक समझ होती तो वह 2002 में विधायक होते। और अभी तक अजेय होते। 2002 में गुनसोला जी कहने पर बीजेपी ने 2 टिकट दिए थे। उन्हें गुस्सा बहुत आता था। गलत चीज को सुनना बर्दास्त नहीं करते थे। जबकि राजनीति में इन्हीं दो चीजों को सहन करना पड़ता है। वह साफगोई से रहते थे।

2010 में वह एक दिन आगराखाल में चाय पीने के लिए रुके थे। संयोग से मैं भी चाय पीने रावत जी के होटल में आगराखाल से पहले रुका। आधा पौन घण्टे तक बात हुई। उन्होंने छोटी छोटी परियोजनाओ के बारे में विस्तार से बताया। कि यह बननी चाहिए। सरकार हमारी नहीं सुनती। सुनती तो उत्तराखंड को बिजली में आत्मनिर्भर बना देता। चंडीगढ़ के दारू के ठेकेदारों को योजनाएं दी जा रही हैं जिन्हें अनुभव ही नहीं है। यही कारण है आज उत्तराखंड जल विद्युत निगम 1100 और 1200 मेगावाट से आगे नहीं बढ़ पाया। कहते हैं हम अपने को ऊर्जा प्रदेश।

गुनसोला जी ने राजनीति पैसे के लिए नहीं की। बल्कि इसलिए की कि, लोग और बड़े अफसर उनका छोटी छोटी जल परियोजनाओं के लिए हुक्म सुनें। वह ठेका भी नहीं चाहते थे। उन्हें बिजली बनाने का भूत सवार था। उन्होंने मुझे एक दिन बताया था कि, 1965 में लिया मेरा देहरादून में एक भूखण्ड यदि अच्छे दामों में 2001 में मुझे मजबूरन राजधानी बनने के दबाव में बिक जाये। या बेचना पड़े तो क्या कहना चाहिए कि हमने राजनीति में पैसा कमाया? वास्तव में राजनीति में उन्होंने सेवा की। लेकिन राजनीतिक अक्ल नहीं रखी। नहीं तो एक बार ऐसा समय भी था वह और उनके विचारधारा के श्री मातबर सिंह कंडारी हर सप्ताह, माह में श्री राजनाथ सिंह से वार्तालाप करते थे। वह गुनसोला जी के कार्यक्रम में टिहरी आये थे। आते रहते थे।

गुनसोला जी को सबसे बड़ा सदमा तब लगा जब उनके बड़े पुत्र का आकिस्मक निधन हो गया था। उनके बड़े पुत्र से 2002 के चुनाव में नई टिहरी में मुलाकात हुई थी। गुनसोला जी को इस दुख की भरपाई शायद उनके दामाद टिहरी जिले के दूसरे आईएएस अफसर 1985 बिहार कैडर श्री रविन्द्र सिंह पंवार ने की होगी। जब रविन्द्र जी की नई दिल्ली या बिहार में परफॉमेंस अच्छी सुनने को उन्हें मिलती थी। उन्होंने ईमानदारी से काम किया। भारत सरकार के सचिव पद से सेवानिवृत्ति ली। अभी एक माह पूर्व श्री पुष्कर सिंह धामी सरकार ने उन्हें रेरा का अध्यक्ष बना दिया।

2016 में मेरी पुस्तक टिहरी कटोरा भर याद के विमोचन समारोह में उपस्थित होने के लिए मैं आमंत्रण देने उनके वसन्त विहार घर गया था। उनका बड़ा घर बहुमंजिला फ्लैट में तब्दील हो गए थे। एक किनारे उनका घर था। वह दोनों पति पत्नी बाहर धूप सेक रहे थे। उन्होंने कहा आओ आओ, आते ही अपनी पत्नी से मेरी मुलाकात कराने लगे कि यही हैं टिहरी के जिन्होंने तुम्हे हराया! मैं हैरान! और मुझे मालूम ही नहीं कि मैडम ताई जी कौन सा चुनाव लड़ी? बाद में पता चला कि किसी की खीज मुझ पर थोड़ी देर के लिए निकाली उन्होंने। दरअसल उनकी पत्नी 13 में जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ी होंगी। कुछ स्थानीय नेताओं ने हरा दी। फिर मैंने कहा मैं 2008 में देहरादून आ गया था। हालांकि गांव से जुड़ाव है। गांव जाता रहता हूँ। जाता रहूंगा। 2 घण्टे की मुलाकात में गुनसोला जी ने कहा कि जिस दिन तुम्हारा विमोचन है उस दिन मुझसे हरियाणा के ऊर्जा सचिव मिलने आ रहे हैं। दरअसल हरियाणा को कुछ बिजली सप्लाई टिहरी ही कर रहा है। टैरिफ का मामला होगा। इत्यादि …

कार्ड पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व पूर्व सांसद श्री त्रेपन सिंह नेगी, पूर्व विधायक गोविंद सिंह नेगी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पूर्व सांसद श्री परिपूर्णानंद पैन्यूली, पर्यावरणविद व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री सुंदरलाल बहुगुणा, आचार्य गोपेश्वर प्रसाद कोठियाल, कैप्टन शूरवीर सिंह पंवार, पूर्व मंत्री खुशहाल सिंह रांगड़ आदि के फोटो थे। गुनसोला जी ने कहा मेरा फोटो क्यों नहीं ? क्या मेरा योगदान कम है। काफी देर तक जबाब देना नहीं बना। वास्तव में वह कर्मयोगी थे। जो बहते पानी में अंदाज़ लगा देते थे इसका उपयोग कैसे करें। विनम्र श्रद्धांजलि गुनसोला जी।

लेखक शीशपाल गुसाईं, वरिष्ठ पत्रकार इतिहासकार हैं।

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