नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने रविवार को देश की बेदाग वित्तीय साख और मजबूत आर्थिक नीतियों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत ने कभी भी अपने राजकोषीय समेकन या ऋण कटौती लक्ष्यों से पीछे नहीं हटने दिया। उन्होंने यह बयान तब दिया जब मूडीज जैसी रेटिंग एजेंसियों ने भारत की साख में बढ़ोतरी नहीं की। भारत सरकार वित्तीय अनुशासन और विकास के संतुलन को बनाए रखने की नीति पर कार्यरत है। ऋण-से-जीडीपी अनुपात को नियंत्रित करने, पूंजीगत व्यय को प्राथमिकता देने और राजकोषीय घाटे को चरणबद्ध तरीके से कम करने की योजना पर कार्य किया जा रहा है।
वित्त मंत्री ने कहा, ‘मैं रुपये की विनिमय दर में गिरावट से चिंतित हूं लेकिन मैं इस आलोचना को स्वीकार नहीं करूंगी कि, ओह रुपया कमजोर हो रहा है! हमारी वृहद आर्थिक बुनियाद मजबूत है। अगर बुनियाद कमजोर होती, तो रुपया सभी मुद्राओं के मुकाबले स्थिर नहीं होता।’ सीतारमण ने कहा, ‘रुपये में जो अस्थिरता है, वह डॉलर के मुकाबले है। रुपया किसी भी अन्य मुद्रा की तुलना में कहीं अधिक स्थिर रहा है।’
उन्होंने कहा, ‘आरबीआई उन तरीकों पर भी विचार कर रहा है, जिनसे वह भारी उतार-चढ़ाव के कारणों को दुरुस्त करने के लिए ही बाजार में हस्तक्षेप करेगा। इसलिए हम सभी स्थिति पर करीब से नजर रख रहे हैं।’ वित्त मंत्री ने रुपये की अस्थिरता और विनिमय दर में गिरावट को लेकर आलोचना करने वालों के बारे में कहा कि वे दलील देने में जल्दबाजी दिखा रहे हैं। सीतारमण ने कहा, ‘आज डॉलर के मजबूत होने और अमेरिका में नए प्रशासन के आने के साथ, रुपये में आ रहे उतार-चढ़ाव को समझना होगा। आलोचनाएं हो सकती हैं, लेकिन उससे पहले थोड़ा और अध्ययन कर प्रतिक्रिया देना बेहतर होगा।’ पिछले कुछ महीनों में भारतीय रुपया दबाव में रहा है लेकिन यह एशिया और अन्य देशों की मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर के संदर्भ में सबसे कम अस्थिर मुद्रा है। हाल में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये के रिकॉर्ड निचले स्तर पर आने का कारण व्यापार घाटे में बढ़ोतरी के अलावा अमेरिकी फेडरल रिजर्व के 2025 में ब्याज दर में कम कटौती के संकेत के बाद डॉलर सूचकांक में उछाल है।
निर्मला सीतारमण ने आगामी वित्तीय वर्ष के बजट में वित्तीय अनुशासन और आर्थिक विकास के बीच संतुलन बनाए रखा है। उन्होंने मध्यम वर्ग को अब तक की सबसे बड़ी कर राहत दी, साथ ही अगले वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे में कटौती की रूपरेखा प्रस्तुत की और वर्ष 2031 तक जीडीपी के अनुपात में ऋण में कमी लाने की योजना रखी। उन्होंने बताया कि कोविड-19 महामारी के दौरान सरकार को आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अधिक उधारी लेनी पड़ी थी। इसके पीछे वैश्विक चुनौतियां, आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान और कई भौगोलिक क्षेत्रों में जारी संघर्ष जैसे कारण थे। इसके बावजूद, सरकार ने अपने राजकोषीय घाटे के लक्ष्यों का पालन किया और अपनी वित्तीय प्रतिबद्धताओं को निभाया। वित्त मंत्री ने बताया कि चालू वित्तीय वर्ष में राजकोषीय घाटा 4.8% रहेगा, जो कि पूर्व निर्धारित लक्ष्य के अनुरूप है। अगले वित्तीय वर्ष (2025-26) में इसे घटाकर 4.4% करने की योजना है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार अपने ऋण प्रबंधन को एक विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के अनुरूप रखेगी। सरकार ने यह घोषणा की है कि दीर्घकालिक दृष्टि से ऋण को व्यवस्थित रूप से कम किया जाएगा। सीतारमण ने कहा कि वित्तीय अनुशासन के बावजूद, सार्वजनिक व्यय में कोई कटौती नहीं की गई है। सरकार ने पूंजीगत व्यय को प्राथमिकता दी है, क्योंकि यह आर्थिक विकास को गति देता है। 2025-26 के लिए पूंजीगत व्यय को 11.21 लाख करोड़ रुपये रखा गया है, जो कि संशोधित अनुमान 10.18 लाख करोड़ रुपये से अधिक है।
राजकोषीय अनुशासन और विकास को लेकर सरकार प्रतिबद्ध’, भारत की वित्तीय नीति पर बोलीं निर्मला सीतारमण
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